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खरतरों के हवाइ किल्ला की दीवारों।
(आधुनिक कई खरतरों ने अपनी और अपने गच्छ की उन्नति का एक नया मार्ग निकाला हैं, जिसका खास उद्देश्य है कि अन्य गच्छीय आचार्य चाहे वे कितने ही उपकारी एवं प्रभाविक क्यों न हो उनकी निंदा कर गलतफहमी फैला कर उनके प्रति जनता की अरुची पैदा करना और अपने गच्छ के आचार्यों की झूठी झूठी प्रशंसा कर भद्रिक लोगों को अपनी ओर झूकाना, परन्तु उन लोगों को अभी यह मालूम नहीं हैं कि हम लोग इस प्रकार हवाइ किल्ला की दीवारें बना रहे हैं, पर इस ऐतिहासिक युग में वे कहां तक खड़ी रह सकेगी? आज मैंने इस हवाई किल्ला की दीवारों का दिग्दर्शन करवाने के लिये ही लेखनी हाथ में ली हैं।)
दीवार नम्बर १ कई खरतरगच्छवाले कहते या अपनी किताबों में लिखा करते हैं कि आचार्य उद्योतनसूरिने वड़वृक्ष के नीचे रात्रि में नक्षत्रबल को जान कर अपने वर्धमानादि ८४ शिष्यों पर छाण (सूखा गोबर) का चूर्ण डाल उन्हें आचार्य बना दिये। और बाद में उन ८४ आचार्यों के अलग अलग ८४ गच्छ हुए । अतः आचार्य उद्योतनसूरि ८४ गच्छों के गुरु है। शायद आप का यह इरादा हो कि उद्योतनसूरि खरतर होने से ८४ गच्छों के गुरु खरतर है।
समीक्षा-इस कथन की सच्चाई के लिये केवल किम्वदन्ती के अतिरिक्त कोई भी प्रमाण आज पर्यन्त किन्हीं खरतरगच्छीय विद्वानों ने नहीं दिया है। और इस कथन में सर्व प्रथम यह शङ्का पैदा होती हैं कि वे ८४ आचार्य और ८४ गच्छ कौन कौन थे? क्योंकि जैन श्वेताम्बर संघ में जिन ८४ गच्छों का जनप्रवाद चला आता है वे ८४ गच्छ किसी एक आचार्य का एक समय में नहीं बने हैं। पर उन ८४ गच्छों का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक का है। और उन ८४ गच्छों के स्थापक आचार्य भी पृथक् पृथक् तथा ८४ गच्छ निकलने के कारण भी पृथक् पृथक् हैं। इस विषय में तो हम आगे चलकर लिखेंगे, पर पहले आचार्य उद्योतनसूरि के विषय में थोड़ा सा खुलासा कर लेते है कि आचार्य उद्योतनसूरि कब हुए और वे किस गच्छ या समुदाय के थे?