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क्यों लगा रहे हो' मैंने खम्भात से विहार किया था उस वक्त यह उम्मेद नहीं थी कि बीच में ही बादशाह का इस प्रकार मनाई का हुक्म आ जायेगा। ये तो किसी अन्य गच्छीयों की भद्दी कार्यवाई है। तुम घबराते क्यों हो? मैं बादशाह से मिलूंगा तब इसका बदला ले ही लूंगा। साधुओं ने कहा कि आप अन्ध गच्छीयों के साथ वृथा ही वैरभाव बाँध रहे हैं। जिसका ही यह फल है कि आज आपको इस प्रकार निराश होना पड़ा है इत्यादि। गुरु शिष्यों में दांताकीची हो ही रही थी कि इतने में कई श्रावक आ गये अतः वे सब चुपचाप हो गये।
यह वही जावलीपुर है कि पाटण में जिनदत्तसूरि स्त्रियों को जिनपूजा निषेध करने के कारण ऊँट पर सवार होकर जावलीपुर आया था। अतः जावलीपुर का श्रीसंघ जिनचन्द्र को ही नहीं पर इनके पूर्वजों को भी अच्छी तरह जानता था। जिनचन्द्र को चातुर्मास में आनेका कारण पूछा। जिनचन्द्र ने कहा कि बादशाह अकबर का आमन्त्रण आया था, अतः मैं आगरे जा रहा था पर आज बादशाह का मनाई का हुक्म आ गया है। अतः मैं विचार में पड़ गया हूँ कि अब मैं आगरे जाऊं या यहां ठहर जाऊं?
संघ अग्रेसरों ने कहा महाराज! आप से तो बादशाह अकबर ही अच्छा है कि उनके हृदय में त्रस स्थावर जीवों की इतनी दया है कि आपको चातुर्मास में विहार करने की मनाई कर दी, इतना ही क्यों पर उसने जैनधर्म की ग्राम ग्राम निन्दा होने को भी रोक दिया। इसका श्रेय आचार्य विजयहीरसूरि को ही है कि उन्होंने बादशाह को प्रतिबोध देकर जैनधर्म का पक्का अनुरागी एवं दयाधर्मी बनाया है इत्यादि । अब आप चातुर्मास के शेष दिन यहाँ ही ठहर जाइये । बस जिनचन्द्रसूरि ने ज्यों त्यों करके शेष दिनों तक जावलीपुर में ही ठहरने का निश्चय किया ठीक है, महत्वाकांक्षियों का यही हाल हुआ करता है।
खम्भात, अहमदाबाद, महेसाना, पालनपुर और सिरोही वगैरह के श्रीसंघ ने जब जिनचन्द्रसूरि का हाल सुना कि बादशाह अकबर का फरमान आ गया कि आप चातुर्मास में आगरे न पधारें इत्यादि इस पर और भी अफसोस किया कि एक जैन यति इस प्रकार यतियों को साथ में लेकर ग्राम ग्राम जैन धर्म की निन्दा करवाता चातुर्मास में फिरता फिरे यह कितने दुःख की बात है। भला जिस व्यक्ति को जिनेन्द्रदेव की आज्ञा का भय नहीं, अपने व्रतों का ख्याल नहीं, लोकापवाद की परवाह नहीं वह बादशाह के पास जाकर क्या उजाला करने वाला है। इस जिनचन्द्र की बजाय तो बादशाह ही अच्छा है कि उसने जीवों की करुणा लाकर