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समझ जायेंगे कि जिनचन्द्र एवं खरतरों को स्थान पर किस प्रकार लज्जित होना पड़ा था।
खरतरों ने अपने थोथे पोथे में यह भी लिख मारा है कि जिनचंद्रसूरि ने बादशाह अकबर को प्रतिबोध दिया था पर यह बिलकुल झूठी एवं कल्पित बात है। क्योंकि बादशाह अकबर को वि. सं. १६३९ में आचार्य विजयहीरसूरीश्वरजी ने प्रतिबोध दिया था। बाद नौ वर्ष तक उनके विद्वान साधु बादशाह को उपदेश देते रहे। तब जिनचंद्रसूरि वि. सं. १६४८ में बादशाह अकबर से मिले थे। पाठक स्वयं सोच सकते हैं कि बादशाह अकबर को प्रतिबोध आचार्य विजयहीरसूरि ने दिया था या जिनचंद्रसूरि ने? यदि यह कह दिया जाय कि जिनचंद्रसूरि को बादशाह के पास जाने का सौभाग्य मिला यह विजयहीरसूरि का ही प्रताप है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है क्योंकि उन्होंने पहले से बादशाह को जैनधर्म का अनुरागी बना रखा था।
बात ऐसी बनी थी कि आगरा में सेठानी चम्पाबाई ने छ: महीनों की तपस्या की। जिसको सुनकर बादशाह आश्चर्य में डूब गया था फिर भी उसने चम्पाबाई की खूब परीक्षा की। जब बादशाह को विश्वास हुआ तो सेठानी से पूछा कि तुम को ऐसी शक्ति कहां से प्राप्त हुई ? इस पर चम्पाबाई ने अपने गुरु विजयहीरसूरि का नाम बताया और यह कहा कि यह सब प्रताप उन महात्मा विजयहीरसूरीश्वरजी का है। अतः बादशाह अकबर एक गुणग्राही पुरुष था उसकी इच्छा विजयहीरसूरि के दर्शन करने की हुई। कई सज्जनों की सम्मति लेकर एक भक्तिपूर्ण फरमान लिखकर अहमदाबाद के सूबेदार को भेजकर कहलाया कि जहां आचार्य विजयहीरसूरि हों वहां इस फरमान को पहँचाकर उन महात्मा से मेरी ओर से प्रार्थना करे कि आपके दर्शन की बादशाह अभिलाषा करता है। अतः आप कृपा कर आगरे जल्दी पधारें इत्यादि तथा महात्माजी आगरे की ओर रवाना हों उस रोज से रास्ते का सब इन्तजाम कर देना इत्यादि।
जब वह फरमान अहमदाबाद के सूबेदार के पास पहुचा तो उसने वहा संघ अग्रेसरों को बुलाकर कहा कि आपके आचार्य विजयहीरसूरि इस वक्त कहाँ पर हैं ? बादशाह का फरमान आया है। उनको बादशाह ने दर्शन करने के लिये बालुया है। संघ अग्रेसरों ने कहा कि इस समय सूरीश्वरजी गन्धार बन्दर विराजते हैं। सूबेदार ने कहा कि मैं अपने आदमियों को बादशाह का फरमान देकर गन्धार भेजता हूँ, अतः आपको भी अपने अग्रेसरों को भेजकर सूरिजी को आगरे पधारने के लिये कोशिश करनी चाहिये इत्यादि ।