________________
१८१
wwwwwwwwwwwwwwwww
दिनों के स्थान १०० दिन हो जाते हैं।
शास्त्रकारों ने अधिक मास को लुन मास माना है। जैसे १६ दिन के पक्ष को भी पक्ष मानकर पाक्षिक प्रतिक्रमण किया जाता है। इस प्रकार अधिक मास के पहले मास को लुन मास मान लिया जाय तो ५०-७० दोनों मर्यादा का पालन हो सकता है और यही बात शास्त्रकारों ने कही है। पर हठधर्मी के कारण खरतर शास्त्र मर्यादा का अनादर कर अपने मिथ्यावाद को नहीं छोड़ते हैं। जैन तो क्या पर अन्य धर्मी भी लुन मास में शुभ कार्य नहीं करते हैं। तो पर्युषण जैसा पर्व लुन मास में हो ही कैसे सकता है? अर्थात् पर्युषणों के लिए भादरवा मास ही नियत माना गया है। अतः आत्मकल्याण और जिनाज्ञा पालन करने वाले मुमुक्षुओं को तो श्रावण दो हों तो भादरवा में और भादरवा दो हो तो दूसरे भादरवा में ही पर्युषण करना चाहिये।
पर्युषणों के लिये जैन शास्त्रकारों ने भादरवा मास नियुक्त किया है। किसी शास्त्र एवं ग्रन्थकारों ने श्रावण में पर्युषण करना नहीं लिखा है। फिर भी खरतरों ने आगमकारों के वचनों को उत्थाप कर दो श्रावण होने पर दूसरे श्रावण में पर्युषण करने का हठ पकड़ लिया है। अतः यह खरतरों की उत्सूत्र प्ररुपणा संसार को बढ़ाने वाली ही समझनी चाहिये।
इनके अलावा भी जिनदत्तसूरि की कई बातें हैं पर समय बहुत हो गया है। अतः आज तो इतने पर ही बातें समाप्त कर दी जाती हैं। इन बातों को सुन कर आत्मार्थी जीवों को इन खरतरों के जाल से बचते रहना चाहिये।।
लो यह तो हुई जिनदत्त की बातें अब आगे कुछ और भी ऐसी बातें सुनाइये?
जिनचन्द्रसूरि की बातें खरतर गच्छ की पट्टावली में जिनचंद्रसूरि नाम के कई आचार्य हो गये हैं क्योंकि पट्टावली में क्रमशः चतुर्थ पाट पर जिनचन्द्रसूरि का नाम आया करता है। खरतर लोग उन जिनचन्द्र सूरियों में से कई को प्रभाविक और कई को पतित भी मानते हैं और प्रभाविकों में दो जिनचन्द्रसूरि को विशेष माना है, जिसमें एक जिनचन्द्रसूरि को स्वर्गवास समय वि. सं. १२२३ का बतलाया जाता है और इनके जीवन के साथ कई घटनायें घटी बतलाते हैं। जैसे जिनचन्द्रसूरि ने दिल्ही के बादशाह को कई चमत्कार दिखाये पर यह बात खरतरों के स्वप्न की सृष्टि होना मालूम होती है। कारण वि. सं. १२२३ तक दिल्ही पर किसी बादशाह का राज नहीं था पर वि. सं. १२४९ तक हिन्दुसम्राट पृथ्वीराज चौहान का राज था। फिर