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के शतपदी नामक ग्रन्थ में स्पष्ट लिखा है कि जिनदत्त अपने मकान में एक पेटी रखवाया करता था और आने जाने वाले धनाढ्यो को उपदेश भी करता था कि इस पेटी में कुछ द्रव्य डालों। इससे तुमको बहुत लाभ होगा। बस कर्म सिद्धान्त से अनभिज्ञ लोग उन धूर्तों के धोखे में आकर धन पुत्रादि की तृष्णा के लिये एवं तृप्त करने को उस पेटी में द्रव्य डाल दिया करते थे। उस द्रव्य से जिनदत्त ने अपनी पादुकायें बनानी शुरु कर दी। फिर तो वह चेपी रोग बढ़ता ही गया। पर इनके पूर्व भगवान गौतम-सौधर्म, जम्बु आदि अनेक आचार्य हुये। किसी भक्तों ने उनकी मूर्तियाँ या पादुकायें बनवाई थी? नहीं ! तो फिर उत्सूत्र प्ररुपक की पादुकायें बनाना, इसमें कौन सा लाभ है? दूसरे केवल पादुकायें बनाने से ही प्रभाविक नहीं कहा जाता है और न वे जनता का भला ही कर सकते हैं। हा खरतरों ने अपनी धूर्तता से जनता को धोखा देकर उनको धन-पुत्र का लाभ बतला कर भद्रिकों को दादाजी का भक्त बना भी दिया हो तो इससे दादाजी का चमत्कार सिद्ध नहीं होता है। क्योंकि अनभिज्ञ लोग दादाजी ही क्यों पर वे तो अन्य देव देवी और पीर पैगम्बरों के यहाँ जाकर भी शिर झुका देते हैं। यदि पिछले लोगों ने दादाजी के झूठे झूठे चमत्कारों के नाम लेकर भद्रिक जनता को धोखा देकर दादाजी को पूजा दिया हो तो यह कल्पित पूजा कहां तक चल सकती है? आखिर को देवालिया का देवाला निकल ही जाता है जैसे:
हाल ही में कृपाचन्द्रसूरि ने पालीताणा में एक जिनदत्तसूरि के नाम से आश्रम खोला है, उस धूर्त ने मारवाड़ियों को यों कह कर लूटा कि गुजराती लोग मारवाड़ियों को कुछ समझते ही नहीं है। इसलिये अपने मारवाड़ियों की एक संस्था खोली है। तुम गुजरातियों की संस्था को द्रव्य नहीं देकर अपनी मारवाड़ियों की संस्था में द्रव्य दिया करो। बस बिचारे भद्रिकों को मारवाड़ियों के नाम से पक्षान्ध बनाकर डाकुओं की भाति पैसा लूट लूट कर द्रव्य एकत्र कर लिया। इसी भाति बिचारे भद्रिकों को धन पुत्रादि का लोभ बतला कर उनके द्रव्य से दादावाड़ियाँ एवं पादुकायें बनवाई हों तो इसमें सिवाय धूर्तता के और है क्या? पर इस प्रकार झूठा एक कल्पित मामला चलता है कहाँ तक? आखिर पाप का घड़ा फूट ही
१. वजी रावी देशना करवा माडी के एक साधारण खातानुं बाजोट रखाववं, तेने आचार्यनो
हुकम लइ उघाडवू, तेमांना पैसामांथी आचार्यादिकना अग्नि संस्कार स्थाने थूमादिक कराववी तथा त्यां यात्रा अने उजाणीओ करवी।
आंचलगच्छ. शतपदी, पृष्ठ १५० 'जिनदत्तसूरि के विषय २५ बातों में से यह ११वी बात है।'