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उनकी प्रतिमाओं को स्त्रियां छू नहीं सकती हैं। पर चौबीस तीर्थंकरों में एक मल्लिनाथ नामक तीर्थंकर तो स्त्री थे। उन भाव तीर्थंकर को स्त्रियां छू सकती थीं। अतः स्त्रियों के लिये मल्लिनाथ की मूर्ति पूजना रख देते तो बिचारी खरतरियां मल्लिनाथ की मूर्ति को पूजा कर अपना कल्याण कर सकती थी। परन्तु खरतरों की तो उस समय अक्ल ही मारी गई थीं। आवेश में उनको कुछ नहीं सूझा।
खरतर मत को मानने वाली कई श्राविकायें आज भी जिनपूजा नहीं करती हैं। हां, कई भद्रिक अन्य गच्छीयों के साथ तीर्थयात्रा करने को जाती हैं और वहां देखा देखी प्रभु पूजा कर भी लेती हैं। तो भी खरतर तो उनको सख्त उपालम्भ ही देते हैं। देखिये, जैसलमेरादि कई स्थानों के मन्दिर खरतरों के अधिकार में हैं। वहां आज भी स्त्रियों को जिनपूजा नहीं करने देते हैं। आचार्य विजयनेमिसूरि पालड़ी वालों के संघ में जैसलमेर पधारे थे। उस समय खरतरों ने स्त्रियों को पूजा करने की मनाई कर दी थी। पर जब सूरिजी ने उनको बहुत फटकारा तब जाकर उन माताओं को पूजा करने दी। इसी प्रकार बम्बईवाला सेठ देवकरण मूलजी की पत्नी जेसलमेर गई थी। उनको भी जिनपूजा करने से रोक दी पर वह बहन इतनी होशियार थी कि वहां के खरतरों को खूब ललकार कर उनके दांत खट्टे कर दिये और आखिर उसने प्रभु पूजा कर ही ली। जब फलोदी वाले श्रीमान् पांचूलालजी वैद्य मेहता की ओर से संघ जैसलमेर गया। उस संघ में आचार्य विजयवल्लभसूरि भी साथ थे। उस समय भी वहां के खरतरों ने स्त्रियों को प्रभुपूजा करने की मनाई कर दी थी। स्त्रियों ने वहां सत्याग्रह कर दिया। आखिर तीन बजे तक वे सब श्राविकायें भूखी प्यासी बैठी रहीं। सूरिजी और गुरुवर्य ने खरतरों को शास्त्रों के पाठ बतलाये और कहा कि जिन उत्सूत्र प्ररुपकों की भूल हो गई है तो उसको सुधारना चाहिये इत्यादि। तब जाकर उन माताओं ने पूजा कर अन्न जल लिया इत्यादि बहुत उदाहरण हैं। इससे कहा जा सकता है कि जिनदत्तसूरि ऋतुमती नहीं पर स्त्री जाति के लिये जिनपूजा निषेध कर एक वज्र पाप की गठरी सिर पर ले गये और पिछले लोग लकीर के फकीर बन इस महान पाप के भागी बन रहे हैं।
फिर भी जैनशासन की तकदीर ही अच्छी थी कि जिनदत्त ने जैसे स्त्री को आशातना करती देख एक स्त्री समाज को ही जिनपूजा का निषेध किया। यदि कहीं एक पुरुष को आशातना करता देख लेता तो सब पुरुषों को भी जिनपूजा का निषेध कर जनता को ३०० वर्ष पूर्व ही लोंका एवं ५०० वर्ष पूर्व ही ढूंढियों का दर्शन करवा देता। यही कारण है कि जिनदत्तसूरि को अर्ध ढूंढक कहा जा