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उत्तराखंड में धर्मप्रचार निमित्त भेज दिया था, बाद में ८३ साधुओं को सूरि पद दिया, बाद तत्काल ही में उद्योतनसूरि ने अनशन कर दिया।
इन चारों खरतरों की चारों बातें कल्पना का कलेवर रुप हैं, यदि खरतर मतानुसार भी कहा जाय तो परस्पर विरोधवाली चारों बातें सत्य हो नहीं सकती हैं। शायद एक सत्य हो तो भी तीन तो असत्य ही हैं, अतः इनके लिखनेवाले मृषावादी साबित होते हैं।
खरतरगच्छ पट्टावलीकारों ने उद्योतनसूरि का समय किसी स्थान पर नहीं लिखा है, तब तपागच्छीय पट्टावलीकारों ने उद्योतनसूरि का समय वि. सं. ९९४ का लिखा है, यदि यह समय ठीक है तो उद्योतनसूरि ने वर्धमानसूरि को सूरि पद दिया या नहीं? यह एक प्रश्न पैदा होता है। कारण खरतरलोग कहते हैं कि वर्धमानसूरि ने वि. सं. १०८८ में आबू पर विमलशाह के बनाये मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई थी। यदि यह बात सत्य है तो समझना चाहिये कि प्रभावक चरित्र में वर्धमानसूरि को ८४ चैत्यों का अधिपति कहा है, अतः वर्धमानसूरि ने अपनी उम्र का अधिक भाग तो चैत्यवास में ही व्यतीत किया होगा। बाद उन्होंने सं. ९९४ के आसपास में उद्योतनसूरि के पास क्रिया उद्धार किया होगा, फिर उन्होंने सं. १०८८ में आबू के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई, अतः करीब १०० वर्ष तक वर्धमानसूरि सूरिपद पर स्थित रहे होंगे? जो बिलकुल असम्भव सी बात प्रतीत
इसमें केवल एक वर्धमानसूरि को ही सूरिपद देना लिखा है, फिर ८४ गच्छस्थापना की बात किस उड़ती हवा की गप्प है ?
'लेखक' १. गच्छ वृद्धयादिलाभं विज्ञाय उत्तराखंड विहारार्थमाज्ञा दत्ता ततो वर्धमानाचार्योऽपि गुर्वादेशं स्वीकृत्य नत्र गतः।
'बा. पू. सं. ख. प., पृष्ठ २०' २. श्री उद्योतनसूरिः स चाऽर्बुदाचलयात्रार्थं पूर्वोवनिताः समागतः टेलिग्रामस्य सीस्निा
पृथोर्वटस्य छायायामुपविष्टो निजपट्टोदयहेतुं भवृयमुहूर्तमवगम्य श्रीवीरात् चतुष्पट्यधिक चतुदर्शतवर्षे वि. चतुनवत्यधिकनवशत ९९४ वर्षे निजपट्टे श्रीसर्वदेवसूरिप्रभृतानष्टौ सूरिन् स्थापितवान् केचित्तु सर्वदेवसूरिमेकमेवेति वदंति ॥
‘पावली समुच्चय, पृष्ठ ५३' ३. देखो यु. प्र. जिनचन्द्रसूरि, पृष्ठ १० ४. तत्रासीत्प्रशमश्रीभिर्वर्द्धमानगुणोदधिः । श्रीवर्धमानइत्याख्या यः सूरिः संसारपारभूः ॥ चतुर्भिरधिकाशीतिश्चैत्यानां येन तत्यजे । सिधान्ताभ्यासतः सत्यं तत्त्वं विज्ञाय संसृतेः ॥
प्रभावक चरित्र, अभयदेव प्रबन्ध, पृष्ठ २६३