________________
wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
खरतरगच्छोत्पत्ति।
श्री जैन श्वेताम्बर समुदाय में मुख्यतया चौरासी गच्छ माने जाते हैं, जिनमें खरतर गच्छ भी एक है। इस गच्छ में बड़े बड़े प्रभावशाली आचार्य हुए हैं और इनकी परम्परा भगवान् महावीर से जाकर मिलती है, पर खरतर गच्छ की उत्पत्ति किस निमित्त, कब और किस आचार्य से हुई यह एक विवादास्पद प्रश्न है, जिसका ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा निर्णय करना इस प्रबन्ध का मुख्य लक्ष्य है। क्योंकि इस विषय में आज जनता में अनेको भ्रम फैल रहे हैं, जैसे :
(१) खरतर गच्छ वाले कहते हैं कि वि. सं. १०८० में पाटण के राजा दुर्लभ की राजसभा में आचार्य जिनेश्वरसूरि और चैत्यवासियों के आपस में शास्त्रार्थ हुआ, जिनेश्वरसूरि का पक्ष खरा होने से राजा दुर्लभ ने आचार्य को 'खरतरबिरुद' दिया, बस ! उसी दिन से जिनेश्वरसूरि की सन्तान खरतर कहलाई, जो आज पर्यन्त भी विद्यमान है।
(२) खरतरों के सिवाय जितने गच्छ हैं उन सबका एक ही मत है कि खरतर शब्द की उत्पत्ति आचार्य जिनदत्तसूरि की प्रकृति के कारण वि. सं. १२०४ में हुई है।
(३) नई रोशनी की शोध एवं खोज से कई लोगों का यह मत है कि खरतर गच्छ की उत्पत्ति न तो शास्त्रार्थ की विजय से हुई और न गच्छ के रुप में, किन्तु जिनदत्तसूरि की प्रकृति के कारण ही, उस देश और काल की प्रचलित भाषा में लोग उन्हें "खरतर-खरतर" इस नाम से कहा करते थे और इस शब्द से जिनदत्तसूरि प्रसन्न नहीं पर सख्त नाराज भी थे, क्योंकि यह एक अपमान सूचक शब्द था, परन्तु समयान्तर में यह अपमान-सूचक शब्द भी गच्छ के रुपमें परिणत हो गया। जैसे 'ओसवालों में ढेढिया, बलाई, चामड़, चण्डालिया आदि जातिए हैं, ये भी मूल में तो राजपूत ही थीं और इनके गोत्र भी अन्य थे, पर कई एक कारणों से लोगों द्वारा उपरोक्त उपनाम पड़ गए। उस समय इन पूर्वोक्त जातियों के मूल पुरुष इन भद्दे नामों से प्रसन्न नहीं किन्तु अप्रसन्न ही थे, परन्तु कालान्तर में लोकमत के बाहुल्य एवं समय प्रभाव से ये शब्द इतने रुढ़ हो गए कि स्वयं वे लोग भी अपने को ढेढिये, बलाई आदि नामों से परिचित कराने लगे और अपने हाथों से अपने आप को ढेढिये, बलाई आदि लिखने लग गए। कारण मूल पुरुषों