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________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' सूत्र-१० नाम-आवश्यक का स्वरूप क्या है ? जिस किसी जीव या अजीव का अथवा जीवों या अजीवों का, तदुभय का अथवा तदुभयों का, 'आवश्यक' ऐसा नाम रख लिया जाता है, उसे नाम-आवश्यक कहते हैं । सूत्र-११ स्थापना-आवश्यक क्या है ? काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पुस्तकर्म, लेप्यकर्म, ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम, अक्ष अथवा वराटक में एक अथवा अनेक आवश्यक रूप से जो सद्भाव अथवा असद्भाव रूप स्थापना की जाती है, वह स्थापना-आवश्यक है। सूत्र-१२ नाम और स्थापना में क्या भिन्नता है ? नाम यावत्कथित होता है, किन्तु स्थापना इत्वरिक और यावत्कथित, दोनों प्रकार की होती है। सूत्र-१३ द्रव्य-आवश्यक क्या है ? द्रव्यावश्यक दो प्रकार का है। आगमद्रव्यावश्यक, नोआगमद्रव्यावश्यक । सूत्र-१४ आगमद्रव्य-आवश्यक क्या है ? जिस ने आवश्यक' पद को सीख लिया है, स्थित कर लिया है, जित कर लिया है, मित कर लिया है, परिजित कर लिया है, नामसम कर लिया है, घोषसम किया है, अहीनाक्षर किया है, अनत्यक्षर किया है, व्यतिक्रमरहित उच्चारण किया है, अस्खलित किया है, पदों को मिश्रित करके उच्चारण नहीं किया है, एक शास्त्र के भिन्न-भिन्न स्थानगत एकार्थक सूत्रों को एकत्रित करके पाठ नहीं किया है, प्रतिपूर्ण किया है, प्रतिपूर्णघोष किया है, कंठादि से स्पष्ट उच्चारण किया है, गुरु के पास वाचना ली है, जिससे वह उस शास्त्र की वाचना, पृच्छना, परावर्तना, धर्मकथा से भी युक्त है। किन्तु अनुप्रेक्षा से रहित होने से वह आगमद्रव्य-आवश्यक है। क्योंकि आवश्यक के उपयोगरहित होने आगमद्रव्य-आवश्यक कहा जाता है। सूत्र-१५ नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्य-आवश्यक है । दो अनुपयुक्त आत्माएँ दो आगमद्रव्य-आवश्यक हैं । इसी प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्माएँ हैं, वे सभी उतनी ही नैगमनय की अपेक्षा आगमद्रव्य-आवश्यक हैं । इसी प्रकार व्यवहारनय भी जानना। संग्रहनय एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्य-आवश्यक और अनेक अनुपयुक्त आत्माएँ अनेक द्रव्यआवश्यक हैं, ऐसा स्वीकार नहीं करता है । वही सभी आत्माओं को एक द्रव्य-आवश्यक ही मानता है। ऋजुसूत्रनय भी भेदों को स्वीकार नहीं करता। तीनों शब्दनय ज्ञायक यदि अनुपयुक्त हो तो उसे अवस्तु मानते हैं । क्योंकि जो ज्ञायक है वह उपयोगशून्य नहीं होता है और जो उपयोगरहित है उसे ज्ञायक नहीं कहा जा सकता। सूत्र-१६ नोआगमद्रव्य-आवश्यक क्या है ? वह तीन प्रकार का है । ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक, भव्यशरीरद्रव्यावश्यक, ज्ञायक-शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक । सूत्र-१७ ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक क्या है ? आवश्यक इस पद के अर्थाधिकार को जानने वाले के चैतन्य से रहित, आयुकर्म के क्षय होने से प्राणों से रहित, आहार-परिणतिजनित वृद्धि से रहित, ऐसे जीवविप्रमुक्त शरीर को शैयागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धशिलागत देखकर कोई कहे- अहो ! इस शरीररूप पुद्गलसंघात ने जिनोपदिष्ट भाव से आवश्यक पद का अध्ययन किया था, प्रज्ञापित किया था, समझाया था, दिखाया था, निदर्शित किया था, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 6
SR No.034714
Book TitleAgam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size3 MB
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