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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र -२, 'अनुयोगद्वार'
एकशेषसमास के उदाहरण हैं। तद्धित से निष्पन्न नाम क्या है ?
सूत्र - २५०
कर्म, शिल्प, श्लोक, संयोग, समीप, संयूथ, ऐश्वर्य, अपत्य, इस प्रकार तद्धितनिष्पन्ननाम आठ प्रकार का
है
सूत्र - २५१
कर्मनाम क्या है ? दौष्यिक, सौत्रिक, कार्पासिक, सूत्रवैचारिक, भांडवैचारि, कौलालिक, ये सब कर्मनिमित्तज नाम हैं । तौन्निक तान्तुवायिक, पाट्टकारिक, औद्वृत्तिक, वारुंटिक मौञ्जकारिक, काष्ठकारिक छात्रकारिक बाह्यकारिक, पौस्तकारिक चैत्रकारिक दान्तकारिक लैप्यकारिक शैलकारिक कोटिटमकारिक । यह शिल्पनाम हैं। सभी के अतिथि श्रमण, ब्राह्मण श्लोकनाम के उदाहरण हैं।
संयोगनाम का रूप इस प्रकार समझना - राजा का ससुर-राजकीय ससुर, राजा का साला राजकीय साला, राजा का साढू-राजकीय साढू इत्यादि संयोगनाम हैं ।
समीपनाम किसे कहते हैं ? समीप अर्थक तद्धित प्रत्यय-निष्पन्ननाम-गिरि के समीप का नगर गिरिनगर, विदिशा के समीप का नगर वैदिश, आदि रूप जानना तरंगवतीकार, मलयवतीकार, आत्मानुषष्ठिकार, बिन्दुकार आदि नाम संयूथ नामके उदाहरण हैं । ऐश्वर्य द्योतक शब्दों से तद्धित प्रत्यय करने पर निष्पन्न ऐश्वर्यनाम राजेश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सार्थवाह, सेनापति आदि रूप हैं । यह ऐश्वर्यनाम का स्वरूप है । अपत्य-पुत्र से विशेषित होने अर्थ में तद्धित प्रत्यय लगाने से निष्पन्ननाम इस प्रकार हैं- तीर्थंकरमाता, चक्रवर्तीमाता, बलदेवनमाता, वासुदेवमाता, राजमाता, गणिमाता, वाचक - माता आदि ये सब अपत्यनाम हैं ।
धातुजनाम क्या है ? परस्मैपदी सत्तार्थक भू धातु, वृद्ध्यर्थक एध् धातु, संघर्षार्थक स्पर्द्ध धातु, प्रतिष्ठा, लिप्सा या संचय अर्थक गाधू और विलोडनार्थक बाधू धातु आदि से निष्पन्न भव, एधमान आदि नाम धातुजनाम हैं। निरुक्ति से निष्पन्ननाम निरुक्तिजनाम हैं जैसे मह्यांशेते, महिषः पृथ्वी पर जो शयन करे वह महिष, भ्रमति रौति इति भ्रमर :- भ्रमण करते हुए जो शब्द करे वह भ्रमर, मुहुर्मुहर्लसति इति मुसल जो बारंबार ऊंचा नीचा हो वह मूसल, इत्यादि निरुक्तिजतद्धितनाम हैं ।
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सूत्र - २५२
भगवन् ! प्रमाण क्या है ? प्रमाण चार प्रकार का है । द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण और भावप्रमाण
सूत्र - २५३
द्रव्यप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, यथा- प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न । प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण क्या है ? परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशों यावत् दस प्रदेशों, संख्यात प्रदेशों, असंख्यात प्रदेशों और अनन्त प्रदेशों से जो निष्पन्न- सिद्ध होता है। विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण पाँच प्रकार है। मानप्रमाण उन्मानप्रमाण, अवमानप्रमाण, गणिमप्रमाण और प्रतिमानप्रमाण ।
मानप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है- धान्यमानप्रमाण और रसमानप्रमाण । धान्यमानप्रमाण क्या है ? दो असति की एक प्रसृति होती है, दो प्रसृति की एक सेतिका, चार सेतिका का एक कुडब, चार कुडब का एक प्रस्थ, चार प्रस्थों का एक आढक, चार आढक का एक द्रोण, साठ आढक का एक जघन्य कुंभ, अस्सी आढक का एक मध्यम कुंभ, सौ आढक का एक उत्कृष्ट कुंभ और आठ सौ आढकों का एक बाह होता है । धन्यमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? ईसके द्वारा मुख, इड्डर, अलिंद और अपचारि में रखे धान्य के प्रमाण का परिज्ञान होता है । इसे ही धान्यमानप्रमाण कहते हैं ।
रसमानप्रमाण क्या है ? रसमानप्रमाण धान्यमानप्रमाण से चतुर्भाग अधिक और अभ्यन्तर शिखायुक्त होता है । चार फल की एक चतुःषष्ठिका होती है। इसी प्रकार आठ पलप्रमाण द्वात्रिंशिका, सोलह पलप्रमाण षोडशिका, बत्तीस पलप्रमाण अष्टभागिका, चौसठ पलप्रमाण चतुर्भागिका १२८ पलप्रमाण अर्धमानी और २५६ पलप्रमाण दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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