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________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र -२, 'अनुयोगद्वार' सर्वकाल स्वभावतः दुर्गन्ध-युक्त यह शरीर सर्व कलहों का मूल है। ऐसा जानकर जो व्यक्ति उसकी मूर्च्छा का त्या करते हैं, वे धन्य हैं । सूत्र - २२७-२२८ रूप, वय, वेष और भाषा की विपरीतता से हास्यरस उत्पन्न होता है । हास्यरस मन को हर्षित करनेवाला है और प्रकाश-मुख, नेत्र आदि का विकसित होना, अट्टहास आदि उनके लक्षण हैं। प्रातः सोकर उठे, कालिमा से काजल की रेखाओं से मंडित देवर के मुख को देखकर स्तनयुगल के भार से नमित मध्यभाग वाली कोई युवती हीही करती हँसती है। सूत्र - २२९-२३० प्रिय के वियोग, बंध, वध, व्याधि, विनिपात, पुत्रादि-मरण एवं संभ्रम- परचक्रादि के भय आदि से करुणरस उत्पन्न होता है । शोक, विलाप, अतिशय म्लानता, रुदन आदि करुणरस के लक्षण हैं । हे पुत्रिके ! प्रियतम के वियोग में उसकी वारंवार अतिशय चिन्ता से क्लान्त-मुर्झाया हुआ और आंसुओं से व्याप्त नेत्रोंवाला तेरा मुख दुर्बल हो गया है। सूत्र - २३१-२३२ निर्दोष, मन की समाधि से और प्रशान्त भाव से जो उत्पन्न होता है तथा अविकार जिसका लक्षण है, उसे प्रशान्तरस जानना चाहिए। सद्भाव के कारण निर्विकार, रूपादि विषयों के अवलोकन की उत्सुकता के परित्याग से उपशान्त एवं क्रोधादि दोषों के परिहार से प्रशान्त, सौम्य दृष्टि से युक्त मुनि का मुखकमल वास्तव में अतीव श्रीसम्पन्न होकर सुशोभित हो रहा है । सूत्र - २३३ गाथाओं द्वारा कहे गये नव काव्यरस अलीकता आदि सूत्र के बत्तीस दोषों से उत्पन्न होते हैं और ये रस कहीं शुद्ध भी होते हैं और कहीं मिश्रित भी होते हैं । सूत्र - २३४ नवनाम का निरूपण पूर्ण हुआ । सूत्र - २३५ दसनाम क्या है ? दस प्रकार के नाम दस नाम हैं । गौणनाम, नोगौणनाम, आदानपदनिष्पन्ननाम, प्रतिपक्षपदनिष्पन्न-नाम, प्रधानपदनिष्पन्ननाम, अनादिसिद्धान्तनिष्पन्ननाम, नामनिष्पन्ननाम, अवयवनिष्पन्ननाम, संयोगनिष्पन्ननाम, प्रमाणनिष्पन्न-नाम । गौण- क्या है ? जो क्षमागुण से युक्त हो उसका 'क्षमण' नाम होना, जो तपे उसे तपन (सूर्य), प्रज्वलित हो उसे ज्वलन (अग्नि), जो बहे उसे पवन कहना । नोगौणनाम क्या है ? वह इस प्रकार जानना - कुन्त से रहित होने पर भी पक्षी को 'सकुन्त' कहना । मूंग धान्य से रहित होने पर भी डिविया को 'समुद्ग' कहना । इसी तरह समुद्र, पलाल, सकुलि, पलाश, मातृवाहक 'बीजवापक' 'इन्द्रगोप' आदि समझना । आदानपदनिष्पन्ननाम क्या है ? आवंती, चातुरंगिज्जे, असंखयं, अहातत्थिज्जे अद्दइज्जे, जण्णइज्जे, पुरिसइज्जे (उसुकारिज्ज), एलइज्जं वीरियं, धम्म, मग्ग, समोसरणं, जमईये आदि आदानपदनिष्यन्ननाम हैं। प्रतिपक्षपद से निष्पन्ननाम क्या है ? इस प्रकार है-नवीन ग्राम, आकर नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रम, संबाह और सन्निवेश आदि में निवास करने पर अशिवा को 'शिवा' शब्द से उच्चारित करना। अग्नि को शीतल और विष को मधुर, कलाल के घर में आम्ल के स्थान पर स्वादु शब्द का व्यवहार होना इसी प्रकार रक्त वर्ण का हो उसे अलक्तक, लाबु को अलाबु, सुंभक को कुसुंभक और विपरीत भाषक को उभाषक' कहना । यह सब प्रतिपक्षपदनिष्पन्ननाम जानना । 1 प्रधानपदनिष्पन्ननाम क्या है ? इस प्रकार है, अशोकवन, सप्तपर्णवन, चंपकवन, आम्रवन, नागवन, दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद" Page 33
SR No.034714
Book TitleAgam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size3 MB
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