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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' सूत्र-५६
अथवा ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध के तीन प्रकार हैं। कृत्स्नस्कन्ध, अकृत्स्नस्कन्ध और अनेकद्रव्यस्कन्ध। सूत्र-५७
कृत्स्नस्कन्ध क्या है ? हयस्कन्ध, गजस्कन्ध यावत् वृषभस्कन्ध जो पूर्व में कहे, वही कृत्स्नस्कन्ध हैं । यही कृत्स्न-स्कन्ध का स्वरूप है। सूत्र-५८
अकृत्स्नस्कन्ध क्या है ? पूर्व में कहे गये द्विप्रदेशिक स्कन्ध आदि यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैं। सूत्र-५९
अनेकद्रव्यस्कन्ध क्या है ? एकदेश अपचित्त और एकदेश उपचित्त भाग मिलकर उनका जो समुदाय बनता है, वह अनेकद्रव्यस्कन्ध हैं। सूत्र-६०
भावस्कन्ध क्या है ? दो प्रकार का है। आगमभावस्कन्ध, नोआगमभावस्कन्ध । सूत्र-६१
आगमभावस्कन्ध क्या है ? स्कन्ध पद के अर्थ का उपयोगयुक्त ज्ञाता आगमभावस्कन्ध है। सूत्र - ६२
नोआगमभावस्कन्ध क्या है ? परस्पर-सम्बन्धित सामायिक आदि छह अध्ययनों के समुदाय के मिलने से निष्पन्न आवश्यकश्रुतस्कन्ध नोआगमभावस्कन्ध है। सूत्र-६३-६५
उस भावस्कन्ध के विविध घोषों एवं व्यंजनों वाले एकार्थक नाम इस प्रकार हैं-गण, काय, निकाय, स्कन्ध, वर्ग, राशि, पुंज, पिंड, निकर, संघात, आकुल और समूह ये सभी भावस्कन्ध के पर्याय हैं। सूत्र-६६-६९
आवश्यक के अर्थाधिकारों के नाम इस प्रकार हैं-सावद्ययोगविरति, उत्कीर्तन, गुणवत् प्रतिपत्ति, स्खलितनिन्दा, व्रण-चिकित्सा और गुणधारणा । इस प्रकार से आवश्यकशास्त्र के समुदायार्थ का संक्षेप में कथन करके अब एक-एक अध्ययन का वर्णन करूँगा।
उनके नाम यह हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान ।
इन में से प्रथम सामयिक अध्ययन के चार अनुयोगद्वार हैं-उपक्रम, निक्षेप, अनुगम, नय। सूत्र-७०
उपक्रम क्या है ? उपक्रम के छह भेद हैं | नाम-उपक्रम, स्थापना-उपक्रम, द्रव्य-उपक्रम, क्षेत्र-उपक्रम, काल-उपक्रम, भाव-उपक्रम । नाम और स्थापना-उपक्रम का स्वरूप नाम एवं स्थापना आवश्यक के समान जानना द्रव्य-उपक्रम क्या है ? दो प्रकार का है-आगमद्रव्य-उपक्रम, नोआगमद्रव्य-उपक्रम इत्यादि पूर्ववत् जानना यावत् ज्ञायकशरीरभव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य-उपक्रम के तीन प्रकार हैं । सचित्तद्रव्य-उपक्रम, अचित्तद्रव्य-उपक्रम, मिश्रशरीरद्रव्य-उपक्रम। सूत्र - ७१
सचित्तद्रव्योपक्रम क्या है ? तीन प्रकार का है । द्विपद, चतुष्पद और अपद । ये प्रत्येक उपक्रम भी दो-दो प्रकार के हैं-परिकर्मद्रव्योपक्रम, वस्तुविनाशद्रव्योपक्रम ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद'
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