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________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र - १, 'नन्दीसूत्र' स्वप्न है?' तब ईहा में प्रवेश करके जानता है कि 'यह अमुक स्वप्न है ।' उसके बाद अवाय में प्रवेश करके उपगत होता है । तत्पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करके संख्यात या असंख्यात काल तक धारण करता है । इस प्रकार मल्लक के दृष्टांत से अवग्रह का स्वरूप हुआ । सूत्र - १२१ - वह मतिज्ञान संक्षेप में चार प्रकार का है। - द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । मतिज्ञानी द्रव्य से सामान्यतः सर्व द्रव्यों को जानता है, किन्तु देखता नहीं । क्षेत्र से सामान्यतः सर्व क्षेत्र को जानता है, किन्तु देखता नहीं । काल से सामान्यतः तीनों कालों को जानता है, किन्तु देखता नहीं । भाव से सामान्यतः सब भावों को जानता है, पर देखता नहीं। सूत्र - १२२ मतिज्ञान के संक्षेप में अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा क्रम से ये चार विकल्प हैं । सूत्र - १२३ अर्थों के अवग्रहण को अवग्रह, अर्थों के पर्यालोचन को ईहा, अर्थों के निर्णयात्मक ज्ञान को अवाय और उपयोग की अविच्युति, वासना तथा स्मृति को धारणा कहते हैं । सूत्र - १२४ –अवग्रह ज्ञान का काल एक समय, ईहा और अवायज्ञान का समय अर्द्धमुहूर्त्त तथा धारणा का कालपरिमाण संख्यात व असंख्यात काल पर्यन्त समझना । सूत्र - १२५ -श्रोत्रेन्द्रिय के साथ स्पष्ट होने पर ही शब्द सुना जाता है, किन्तु नेत्र रूप को बिना स्पृष्ट हुए ही देखते हैं । चक्षुरिन्द्रिय अप्राप्यकारी ही हैं । घ्राण, रसन और स्पर्शन इन्द्रियों से बद्धस्पृष्ट हुए-पुद्गल जाने जाते हैं । सूत्र - १२६ -वक्ता द्वारा छोड़े गए जिन भाषारूप पुद्गल समूह को समश्रेणि में स्थित श्रोता सुनता है, उन्हें नियम से अन्य शब्द द्रव्यों से मिश्रित ही सुनता है। विश्रेणि में स्थित श्रोता शब्द को नियम से पराघात होने पर ही सुनता है सूत्र - १२७ ईहा, अपोह, विमर्श, मार्गणा, गवेषणा, संज्ञा, स्मृति, मति और प्रज्ञा, ये सब आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायवाची नाम हैं सूत्र - १२८ यह सूत्र - १२९ आभिनिबोधिक ज्ञान-परोक्ष का विवरण पूर्ण हुआ । मतिज्ञान भी सम्पूर्ण हुआ । -श्रुतज्ञान-परोक्ष कितने प्रकार का है ? चौदह प्रकार का, अक्षरश्रुत, अनक्षरश्रुत, संज्ञिश्रुत, असंज्ञिश्रुत, सम्यक्श्रुत, मिथ्याश्रुत, सादिक्श्रुत, अनादिकश्रुत, सपर्यवसितश्रुत, अपर्यवसितश्रुत, गमिकश्रुत, अगमिकश्रुत, अङ्गप्रविष्टश्रुत और अनङ्ग-प्रविष्टश्रुत | सूत्र - १३० - अक्षरश्रुत कितने प्रकार का है ? तीन प्रकार से है- संज्ञा अक्षर, व्यञ्जन- अक्षर और लब्धि अक्षर अक्षर की आकृति आदि, जो विभिन्न लिपियों में लिखे जाते हैं, वे संज्ञा अक्षर हैं उच्चारण किए जानेवाले अक्षर व्यंजनअक्षर हैं। अक्षर-लब्धि वाले जीव को लब्धि अक्षर उत्पन्न होता है अर्थात् भावरूप श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है। जैसेश्रोत्रेन्द्रियलब्धिअक्षर, यावत् स्पर्शनेन्द्रियलब्धिअक्षर और नोइन्द्रियलब्धि- अक्षर । इस प्रकार अक्षरश्रुत का वर्णन है मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (नन्दी) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद" - Page 17
SR No.034713
Book TitleAgam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 44, & agam_nandisutra
File Size2 MB
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