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________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र -१, 'नन्दीसूत्र' सूत्र - १२० -चार प्रकार का व्यंजनावग्रह, छह प्रकार का अर्थावग्रह, छह प्रकार की ईहा, छह प्रकार का अवाय और छह प्रकार की धारणा, इस प्रकार अट्ठाईसविध मतिज्ञान के व्यंजन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूँगा । " कोई व्यक्ति किसी गुप्त पुरुष को हे अमुक हे अमुक इस प्रकार कह कर जगाए। भगवन् ! क्या ऐसा संबोधन करने पर उस पुरुष के कानों में एक समय में प्रवेश किए हुए पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं या दो समय में अथवा दस समयों में, संख्यात समयों में या असंख्यात समयों में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं ? " ‘‘एक समय में प्रविष्ट हुए पुद्गल ग्रहण करने में नहीं आते, यावत् न ही संख्यात समय में, अपितु असंख्यात समयों में प्रविष्ट हुए शब्द पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं ।'' इस तरह यह प्रतिबोधक के दृष्टान्त से व्यंजन अवग्रह का स्वरूप वर्णित किया गया । 'मल्लक के दृष्टान्त से व्यंजनावग्रह का स्वरूप किस प्रकार है ?' जिस प्रकार कोई व्यक्ति आपाकशीर्ष लेकर उसमें पानी की एक बूँद डाले, उसके नष्ट हो जाने पर दूसरी, फिर तीसरी, इसी प्रकार कई बूँदें नष्ट हो जाने पर भी निरन्तर डालता रहे तो पानी की कोई बूँद ऐसी होगी जो उस प्याले को गीला करेगी । तत्पश्चात् कोई बूँद उसमें ठहरेगी और किसी बूँद से प्याला भर जाएगा और भरने पर किसी बूँद से पानी बाहर गिरने लगेगा । इसी प्रकार वह व्यंजन अनन्त पुद्गलों से क्रमशः पूरित होता है, तब वह पुरुष हुंकार करता है, किन्तु यह नहीं जानता कि यह किस व्यक्ति का शब्द है ? तत्पश्चात् ईहा में प्रवेश करता है तब जानता है कि यह अमुक व्यक्ति का शब्द है तत्पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है, तब शब्द का ज्ञान होता है। इसके बाद धारणा में प्रवेश करता है और संख्यात अथवा असंख्यातकाल पर्यंत धारण किये रहता है। T किसी पुरुष ने अव्यक्त शब्द को सुनकर यह कोई शब्द है इस प्रकार ग्रहण किया किन्तु वह यह नहीं जानता कि यह शब्द किसका है ? तब वह ईहा में प्रवेश करता है, फिर जानता है कि यह अमुक शब्द है। फिर अवाय में प्रवेश करता है । तत्पश्चात् उसे उपगत हो जाता है और फिर धारणा में प्रवेश करता है, और उसे संख्यातकाल और असंख्यातकाल पर्यन्त धारण किये रहता है । कोई व्यक्ति अस्पष्ट रूप को देखे, उसने यह कोई रूप है इस प्रकार ग्रहण किया, परन्तु यह नहीं जान पाया कि ‘किसका रूप है ?' तब वह ईहा में प्रविष्ट होता है तथा छानबीन करके यह 'अमुक रूप है' इस प्रकार जानता है। तत्पश्चात् अवाय में प्रविष्ट होकर उपगत हो जाता है, फिर धारणा में प्रवेश करके उसे संख्यात काल अथवा असंख्यात तक धारण कर रखता है । कोई पुरुष अव्यक्त गंध को सूँघता है, उसने कोई गंध है' इस प्रकार ग्रहण किया, किन्तु वह यह नहीं जानता कि 'किस प्रकार की गंध है ?' तदनन्तर ईहा में प्रवेश करके जानता है कि 'यह अमुक गंध है ।' फिर अवाय में प्रवेश करके गंध से उपगत हो जाता है । तत्पश्चात् धारणा करके उसे संख्यात व असंख्यात काल तक धारण किये रहता है ।........कोई व्यक्ति किसी रस का आस्वादन करता है। रस को ग्रहण करता है किन्तु यह नहीं जानता कि 'कौन सा रस है?' तब ईहा में प्रवेश करके वह जान लेता है कि 'यह अमुक प्रकार का रस है ।' तत्पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है । तब उसे उपगत हो जाता है । तदनन्तर धारणा करके संख्यात एवं असंख्यात काल तक धारण किये रहता है । । " - कोई पुरुष अव्यक्त स्पर्श को स्पर्श करता है, 'कोई स्पर्श है' इस प्रकार ग्रहण किया किन्तु यह नहीं जाना कि स्पर्श किस प्रकार का है? तब ईहा में प्रवेश करता है और जानता है कि अमुक का स्पर्श है।' तत्पश्चात् अवाय में प्रवेश करके वह उपगत होता है । फिर धारणा में प्रवेश करने के बाद संख्यात अथवा असंख्यात काल पर्यन्त धारण किये रहता है। -कोई पुरुष अव्यक्त स्वप्न को देखे, 'स्वप्न है' इस प्रकार ग्रहण किया, परन्तु यह नहीं जानता कि 'कैसा मुनि दीपरत्नसागर कृत् (नन्दी) आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद Page 16
SR No.034713
Book TitleAgam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 44, & agam_nandisutra
File Size2 MB
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