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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन
अध्ययन / सूत्रांक
गणधर गौतम- जो सन्मार्ग में चलते हैं और जो उन्मार्ग से चलते हैं, उन सबको मैं जानता हूँ । अतः हे मुने! मैं नही भटकता हूँ ।"
सूत्र ९०८ ९०९
मार्ग किसे कहते हैं ? केशी ने गौतम को कहा । गौतम ने कहा- मिथ्या प्रवचन को मानने वाले सभी पाखण्डी लोग उन्मार्ग पर चलते हैं । सन्मार्ग तो जिनोपदिष्ट है, और वही उत्तम मार्ग है ।
सूत्र - ९९०-९११
गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। मुने महान् जलप्रवाह के वेग से बहते डूबते हुए प्राणियों के लिए शरण, गति, प्रतिष्ठा और द्वीप तुम किसे मानते हो ?"
सूत्र - ९१२
गणधर गौतम-जल के बीच एक विशाल महाद्वीप है। वहाँ महान् जलप्रवाह के वेग की गति नहीं है। सूत्र - ९१३ - ९१४
वह महाद्वीप कौन सा है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा-जरा-मरण के वेग से बहते डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है।
सूत्र - ९१५-९१६
गीतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया, मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें । महाप्रवाह वाले समुद्र में नौका डगमगा रही है । तुम उस पर चढ़कर कैसे पार जा सकोगे ?
सूत्र- ९१७
गणधर गौतम- जो नौका छिद्रयुक्त है, वह पार नहीं जा सकती। जो छिद्ररहित है वही नौका पार जाती है सूत्र - ९१८- ९१९
वह नौका कौन सी है ? केशी ने गौतम को कहा । गौतम ने कहा- शरीर नौका है, जीव नाविक है और संसार समुद्र है, जिसे महर्षि तैर जाते हैं ।
सूत्र - ९२०-९२१
गीतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें । भयंकर गाढ अन्धकार में बहुत से प्राणी रह रहे हैं । सम्पूर्ण लोक में प्राणियों के लिए कौन प्रकाश करेगा?
सूत्र - ९२२
गणधर गौतम- सम्पूर्ण जगत् में प्रकाश करने वाला निर्मल सूर्य उदित हो चुका है। वह सब प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा।
सूत्र - ९२३-९२४
वह सूर्य कौन है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा जिसका संसार क्षीण हो गया है, जो सर्वज्ञ है, ऐसा जिन-भास्कर उदित हो चुका है । वह सब प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा ।
सूत्र - ९२५ ९२६
गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया । मेरा एक और भी सन्देह है । गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। मुने! शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित प्राणियों के लिए तुम क्षेम, शिव
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उत्तराध्ययन) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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