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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र-८४०-८४२
यदि तू जिस किसी स्त्री को देखकर ऐसे ही राग-भाव करेगा, तो वायु से कम्पित हड की तरह तू अस्थितात्मा होगा। जैसे गोपाल और भाण्डपाल उस द्रव्य के स्वामी नहीं होते हैं, उसी प्रकार तू भी श्रामण्य का स्वामी नहीं होगा।
तू क्रोध, मान, माया और लोभ को पूर्णतया निग्रह करके, इन्द्रियों को वश में करके अपने-आप को उपसंहार करसूत्र-८४३-८४५
उस संयता के सुभाषित वचनों को सुनकर रथनेमि धर्म में सम्यक् प्रकार से वैसे ही स्थिर हो गया, जैसे अंकुश से हाथी हो जाता है।
वह मन, वचन और काया से गुप्त, जितेन्द्रिय और व्रतों में दृढ़ हो गया । जीवन-पर्यन्त निश्चल भाव से श्रामण्य का पालन करता रहा । उग्र तप का आचरण करके दोनों ही केवली हुए । सब कर्मों का क्षय करके उन्होंने अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त किया। सूत्र-८४६
सम्बुद्ध, पण्डित और प्रविचक्षण पुरुष ऐसा ही करते हैं । पुरुषोत्तम रथनेमि की तरह वे भोगों से निवृत्त हो जाते हैं। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-२२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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