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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक करनेवाले भी देखे जाते हैं । उत्तम धर्म की श्रुति मिलने पर भी श्रद्धा होना दुर्लभ है । बहुत से लोग मिथ्यात्व का सेवन करते हैं।
धर्मश्रद्धा होने पर भी तदनुरूप आचरण होना दुर्लभ है । बहुत से धर्मश्रद्धालु भी काम भोगों में आसक्त हैं। अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३११-३१६
तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, बाल सफेद हो रहे हैं । श्रवणशक्ति कमजोर हो रही है।
शरीर जीर्ण हो रहा है, आँखों की शक्ति क्षीण हो रही है । घ्राण शक्ति हीन हो रही है । रसग्राहक जिह्वा की शक्ति नष्ट हो रही है । स्पर्शशक्ति क्षीण हो रही है । सारी शक्ति ही क्षीण हो रही है।
इस स्थिति में गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३१७
वात-विकार आदि से जन्य चितोद्वेग, फोड़ा-फुन्सी, विसूचिका तथा अन्य भी शीघ्र-घाती विविध रोग से शरीर गिर जाता है, विध्वस्त हो जाता है । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३१८
जैसे शरद-कालीन कुमुद पानी से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार तू भी अपना सभी प्रकार का स्नेह का त्याग कर, गौतम ! इसमें तू समय मात्र भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३१९
धन और पत्नी का परित्याग कर तू अनगार वृत्ति में दीक्षित हुआ है । अतः एक बार वमन किए गए भोगों को पुनः मत पी, गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३२०
मित्र, बान्धव और विपुल धनराशि को छोड़कर पुनः उनकी गवेषणा मत कर । हे गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। सूत्र-३२१
भविष्य में लोग कहेंगे-'आज जिन नहीं दिख रहे हैं और जो मार्गदर्शक हैं भी, वे एक मत के नहीं है।' किन्तु आज तुझे न्यायपूर्ण मार्ग उपलब्ध है। अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३२२
कंटकाकीर्ण पथ छोड़कर तू साफ राज-मार्ग पर आ गया है। अतः दृढ़ श्रद्धा के साथ इस मार्ग पर चल । गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३२३
कमजोर भारवाहक विषम मार्ग पर जाता है, तो पश्चात्ताप करता है, गौतम ! तुम उसकी तरह विषम मार्ग पर मत जाओ। अन्यता बाद में पछताना होगा । गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३२४
हे गौतम ! तू महासागर को तो पार कर गया है, अब तीर के निकट पहुँच कर क्यों खड़ा है ? उसको पार करने में जल्दी कर । गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । सूत्र - ३२५
तू देहमुक्त सिद्धत्व को प्राप्त कराने वाली क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो कर क्षेम, शिव और अनुत्तर सिद्धि लोक को प्राप्त करेगा । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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