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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक वायुकुमार और स्तनितकुमार-ये दस भवनवासी देव हैं। सूत्र - १६७०
पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गन्धर्व-ये आठ व्यन्तर देव हैं। सूत्र - १६७१
चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और तारा-ये पाँच ज्योतिष्क देव हैं । ये दिशाविचारी हैं। सूत्र - १६७२
वैमानिक देवों के दो भेद हैं-कल्प से सहित और कल्पातीत । सूत्र - १६७३-१६७४
कल्पोपग देव के बारह प्रकार हैं-सौधर्म, ईशानक, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत आरण और अच्युत । सूत्र - १६७५-१६७९
कल्पातीत देवों के दो भेद हैं-ग्रैवेयक और अनुत्तर | ग्रैवेयक नौ प्रकार के हैं-अधस्तन-अधस्तन, अधस्तन-मध्यम, अधस्तन-उपरितन, मध्यम-अधस्तन, मध्यम-मध्यम, मध्यम-उपरितन, उपरितन-अधस्तन, उपरितन-मध्यम और उपरितन-उपरितन-ये नौ ग्रैवेयक हैं । विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धक-ये पाँच अनुत्तर देव हैं । इस प्रकार वैमानिक देव अनेक प्रकार के हैं। सूत्र-१६८०-१६८१
वे सभी लोक के एक भाग में व्याप्त हैं । इस निरूपण के बाद चार प्रकार से उनके काल-विभाग का कथन करूँगा । वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं । स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। सूत्र-१६८२-१६८४
भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति किंचित् अधिक एक सागरोपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है। व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति एक पल्योपम की और जघ
की उत्कष्ट आय-स्थिति एक पल्योपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है। ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की और जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग है। सूत्र - १६८५-१६९६
सौधर्म देवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति दो सागरोपम और जघन्य एक पल्योपम । ईशान देवों की उत्कृष्ट किंचित् अधिक सागरोपम और जघन्य किंचित् अधिक एक पल्योपम । सनत्कुमार की उत्कृष्ट सात सागरोपम और जघन्य दो सागरोपम । माहेन्द्रकुमार की उत्कृष्ट किंचित् अधिक सात सागरोपम, और जघन्य किंचित् अधिक दो सागरोपम । ब्रह्मलोक देवों की उत्कृष्ट दस सागरोपम और जघन्य सात सागरोपम लान्तक देवों की उत्कृष्ट चौदह सागरोपम, जघन्य दस सागरोपम । महाशुक्र देवों की उत्कृष्ट सतरह सागरोपम और जघन्य चौदह सागरोपम । सहस्रार देवों की उत्कृष्ट अठारह सागरोपम, जघन्य सतरह सागरोपम । आनत देवों की उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम, जघन्य अठारह सागरोपम । प्राणत देवों की उत्कृष्ट बीस सागरोपम और जघन्य उन्नीस सागरोपम । आरण देवों की उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम, जघन्य बीस सागरोपम और
अच्युत देवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट बाईस सागरोपम, जघन्य इक्कीस सागरोपम हैं । सूत्र - १६९७-१७०५
प्रथम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति तेईस जघन्य बाईस सागरोपम । द्वितीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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