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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन
अध्ययन- ३६- जीवाजीवविभक्ति
सूत्र - १४६५
जीव और अजीव के विभाग का तुम एकाग्र मन होकर मुझसे सुनो, जिसे जानकर भिक्षु सम्यक् प्रकार से संयम में यत्नशील होता है।
सूत्र - १४६७
सूत्र- १४६६
यह लोक जीव और अजीवमय कहा गया है और जहाँ अजीव का एक देश केवल आकाश है, वह अलोक कहा जाता है।
अध्ययन / सूत्रांक
द्रव्य से, क्षेत्र से काल से और भाव से जीव और अजीव की प्ररूपणा होती है।
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सूत्र - १४६८
अजीव के दो प्रकार हैं-रूपी और अरूपी अरूपी दस प्रकार का है, और रूपी चार प्रकार का ।
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सूत्र - १४६९ - १४७०
धर्मास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश अधर्मास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश आकाशास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश । और एक अद्धा समय ये दस भेद अरूपी अजीव के हैं ।
सूत्र - १४७१-१४७२
धर्म और अधर्म लोक-प्रमाण हैं । आकाश लोक और अलोक में व्याप्त है । काल केवल समय-क्षेत्र में नहीं है । धर्म, अधर्म, आकाश-ये तीनों द्रव्य अनादि, अपर्यवसित और सर्वकाल हैं ।
सूत्र - १४७४-१४७६
सूत्र - १४७३
प्रवाह की अपेक्षा से समय भी अनादि अनन्त है । प्रतिनियत व्यक्ति रूप एक-एक क्षण की अपेक्षा से सादि सान्त है।
रूपी द्रव्य के चार भेद हैं- स्कन्ध, स्कन्ध-देश, स्कन्ध- प्रदेश और परमाणु ।
परमाणुओं के एकत्व होने से स्कन्ध होते हैं । स्कन्ध के पृथक् होने से परमाणु होते हैं । यह द्रव्य की अपेक्षा से है ।
क्षेत्र की अपेक्षा से वे स्कन्ध आदि लोक के एक देश से लेकर सम्पूर्ण लोक तक में भाज्य हैं- यहाँ से आगे स्कन्ध और परमाणु के काल की अपेक्षा से चार भेद कहता हूँ ।
स्कन्ध आदि प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं ।
सूत्र - १४७७
रूपी अजीवों- पुद्गल द्रव्यों की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल की बताई गई है। सूत्र - १४७८
रूपी अजीवों का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है।
सूत्र - १४७९
वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से स्कन्ध आदि का परिणमन पाँच प्रकार का है।
सूत्र - १४८०
जो स्कन्ध आदि पुद्गल वर्ण से परिणत हैं, वे पाँच प्रकार के हैं-कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और शुक्ल ।
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सूत्र - १४८१
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उत्तराध्ययन) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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