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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र - १४६१
मुनि अर्चना, रचना, पूजा, ऋद्धि, सत्कार और सम्मान की मन से भी प्रार्थना न करे । सूत्र - १४६२
मुनि शुक्ल ध्यान में लीन रहे । निदानरहित और अकिंचन रहे । जीवनपर्यन्त शरीर की आसक्ति को छोड़कर विचरण करे। सूत्र - १४६३
अन्तिम काल-धर्म उपस्थित होने पर मुनि आहार का परित्याग कर और मनुष्य-शरीर को छोड़कर दुःखों से मुक्तप्रभु हो जाता है। सूत्र-१४६४
__ निर्मम, निरहंकार, वीतराग और अनाश्रव मुनि केवल-ज्ञान को प्राप्त कर शाश्वत परिनिर्वाण को प्राप्त होता है। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-३५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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