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________________ आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक कि-मैंने क्या किया है ? मेरे लिए क्या कृत्य शेष रहा है ? वह कौन-सा कार्य है, जो मेरे द्वारा शक्य है, किन्तु मैं नहीं कर रहा हूँ ? क्या मेरी स्खलना को दूसरा कोई देखता है ? अथवा क्या अपनी भूल को मैं स्वयं देखता हूँ ? अथवा कौन-सी स्खलना मैं नहीं त्याग रहा हूँ ? इस प्रकार आत्मा का सम्यक् अनुप्रेक्षण करता हुआ मुनि अनागत में प्रतिबन्ध न करे। सूत्र - ५३८ जिस क्रिया में भी तन से, वाणी से अथवा मन से (अपने को) दुष्प्रयुक्त देखे, वहीं (उसी क्रिया में) धीर सम्भल जाए, जैसे जातिमान् अश्व लगाम खींचते ही शीघ्र संभल जाता है। सूत्र -५३९ जिस जितेन्द्रिय, धृतिमान् सत्पुरुष के योग सदा इस प्रकार के रहते हैं, उसे लोक में प्रतिबुद्धजीवी कहते हैं, वही वास्तव में संयमी जीवन जीता है। सूत्र -५४० समस्त इन्द्रियों को सुसमाहित करके आत्मा की सतत रक्षा करनी चाहिए, अरक्षित आत्मा जातिपथ को प्राप्त होता है और सुरक्षित आत्मा सब दुःखों से मुक्त हो जाता है । -ऐसा मैं कहता हूँ। चूलिका-२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण | [४२] दशवैकालिक-मूलसूत्र -३-हिन्दी अनुवाद पूर्ण । मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 47
SR No.034711
Book TitleAgam 42 Dashvaikalik Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 42, & agam_dashvaikalik
File Size2 MB
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