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________________ आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक उपचित, संजात, प्रीणित या (यह) महाकाय है, इस प्रकार बोले । सूत्र - ३१७-३१८ इसी प्रकार प्रज्ञावान् मुनि-ये गायें दुहने योग्य हैं, ये बछड़े दमन योग्य हैं, वहन करने योग्य है, रथ योग्य हैं; इस प्रकार न बोले । प्रयोजनवश बोलना ही पड़े तो यह युवा बैल है, यह दूध देनेवाली है तथा छोटा बैल, बड़ा बैल अथवा संवहन योग्य है, इस प्रकार बोले । सूत्र - ३१९-३२१ इसी प्रकार उद्यान में, पर्वतों पर अथवा वनों में जाकर बड़े-बड़े वृक्षों को देख कर प्रज्ञावान् साधु इस प्रकार न बोले- 'ये वृक्ष प्रासाद, स्तम्भ, तोरण, घर, परिघ, अर्गला एवं नौका तथा जल की कुंडी, पीठ, काष्ठपात्र, हल, मयिक, यंत्रयष्टि, गाड़ी के पहिये की नाभि अथवा अहरन, आसन, शयन, यान और उपाश्रय के (लिए) उपयुक्त कुछ (काष्ठ) हैं-इस प्रकार की भूतोपघातिनी भाषा प्रज्ञासम्पन्न साधु न बोले। सूत्र - ३२३-३२४ (कारणवश) उद्यान में, पर्वतों पर या वनों में जा कर रहा हुआ प्रज्ञावान् साधु वहां बड़े-बड़े वृक्षों को देख इस प्रकार कहे-'ये वृक्ष उत्तम जातिवाले हैं, दीर्घ, गोल, महालय, शाखाओं एवं प्रशाखाओं वाले तथा दर्शनीय हैं, इस प्रकार बोले । सूत्र - ३२५-३२६ तथा ये फल परिपक्व हो गए हैं, पका कर खाने के योग्य हैं, ये फल कालोचित हैं, इनमें गुठली नहीं पड़ी, ये दो टुकड़े करने योग्य हैं-इस प्रकार भी न बोले । प्रयोजनवश बोलना पड़े तो "ये आम्रवृक्ष फलों का भार सहने में असमर्थ हैं, बहुनिवर्तित फल वाले हैं, बहु-संभूत हैं अथवा भूतरूप हैं; इस प्रकार बोले । सूत्र - ३२७-३२८ इसी प्रकार-'ये धान्य-ओषधियाँ पक गई हैं, नीली छाल वाली हैं, काटने योग्य हैं, ये भूनने योग्य हैं, अग्नि में सेक कर खाने योग्य हैं; इस प्रकार न कहे । यदि प्रयोजनवश कुछ कहना हो तो ये ओषधियाँ अंकुरित, प्रायः निष्पन्न, स्थिरीभूत, उपघात से पार हो गई हैं। अभी कण गर्भ में हैं या कण गर्भ से बाहर निकल आये हैं, या सिटे परिपक्व बीज वाले हो गये हैं, इस प्रकार बोले । सूत्र - ३२९-३३२ इसी प्रकार साधु को जीमणवार (संखडी) और कृत्य (मृतकभोज) जान कर ये करणीय हैं, यह चोर मारने योग्य हैं, ये नदियाँ अच्छी तरह से तैरने योग्य हैं, इस प्रकार न बोले-(प्रयोजनवश कहना पड़े तो) संखडी को (यह) संखडी है, चोर को अपने प्राणों को कष्ट में डालकर स्वार्थ सिद्ध करने वाला' कहें । और नदियों के तीर्थ बहुत सम हैं, इस प्रकार बोले । तथा ये नदियाँ जल से पूर्ण भरी हुई हैं; शरीर से तैरने योग्य हैं, इस प्रकार न कहे । तथा ये नौकाओं द्वारा पार की जा सकती हैं, एवं प्राणी इनका जल पी सकते हैं, ऐसा भी न बोले । (प्रयोजनवश कहना पड़े तो) प्रायः जल से भरी हुई हैं; अगाध हैं, ये बहुत विस्तृत जल वाली हैं,-प्रज्ञावान् भिक्षु इस प्रकार कहे। सूत्र - ३३३-३३५ इसी प्रकार सावध व्यापार दूसरे के लिए किया गया हो, किया जा रहा हो अथवा किया जाएगा ऐसा जान कर सावध वचन मुनि न बोले । कोई सावध कार्य हो रहा हो तो उसे देखकर बहुत अच्छा किया, यह भोजन बहुत अच्छा पकाया है; अच्छा काटा है; अच्छा हुआ इस कृपण का धन हरण हुआ; (अच्छा हुआ, वह दुष्ट) मर गया, मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 28
SR No.034711
Book TitleAgam 42 Dashvaikalik Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 42, & agam_dashvaikalik
File Size2 MB
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