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________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, "पिंडनियुक्ति' होवे कदाचित नहीं भी होवे। बहु लेपयुक्त द्रव्य - खीर, दूध, दही, दूधपाक, तेल, घी, गुड़ का पानी इत्यादि । जिस द्रव्य से भाजन खरड़ाते हैं और देने के बाद वह भाजन अवश्य धोना पड़े ऐसे द्रव्यों को पापभीरु साधु ग्रहण नहीं करते हैं । अपवाद - पश्चात्कर्म न होवे ऐसे द्रव्य लेना कल्पे । खरड़ाये हुए हाथ, खरड़ाया हुआ भाजन एवं सविशेष द्रव्य तथा निरवशेष द्रव्य के योग से आठ भेद होते हैं । इन आठ भेदों में १-३-५-७ भेदवाला कल्पता है और २-४-६-८ भेदवाला नहीं कल्पता जैसे कि - खरड़ाये हुए हाथ, खरड़ाया हुआ भाजन और सविशेष द्रव्य पहला भेद है तो वह कल्पता है। हाथ-भाजन या हाथ और भाजन दोनों, यदि साधु के आने से पहले गृहस्थने अपने लिए लिप्त किए हो मगर साधु के लिए न लिप्त किए हो तो उसमें पश्चात्कर्म दोष नहीं होता । जिसमें द्रव्य शेष बच जाता हो उसमें साधु के लिए भी हाथ या पात्र खरड़ाये हुए हो तो भी साधु के लिए धोने का नहीं इसीलिए साधु को लेना कल्पता है। सूत्र - ६६९-६७० गृहस्थ आहारादि को वहोराते समय भूमि पर बूंदें गिराये तो वह 'छर्दितदोषयुक्त आहार कहलाता है । उसमें सचित्त, अचित्त एवं मिश्र की तीन चतुर्भगी होती है । उसका पृथ्वीकायादि छह के साथ भेद कहने से कुल ४३२ भेद होते हैं। प्रथम चतुर्भंगी - सचित्त वस्तु सचित्त में गिरे, मिश्र वस्तु सचित्त में गिरे, सचित्त वस्तु मिश्र में गिरे और अचित्त वस्तु अचित्त में गिरे। दूसरी चतुर्भंगी - सचित्त वस्तु सचित्त में गिरे, अचित्त वस्तु सचित्त में गिरे, सचित्त वस्तु अचित्त में गिरे और अचित्त वस्तु अचित्त में गिरे। तीसरी चतुर्भगी - मिश्रवस्तु मिश्र में गिरे, अचित्त वस्तु मिश्र में गिरे, अचित्त वस्तु अचित्त में गिरे और मिश्र वस्तु अचित्त में गिरे। सचित्त पृथ्वीकायादि में सचित्त पृथ्वीकायादि के ३६ भेद, सचित्त पृथ्वीकायादि में मिश्र पृथ्वीकायादि के ३६ भेद, मिश्र पृथ्वीकायादि में सचित्त पृथ्वीकायादि के ३६ भेद और मिश्र पृथ्वीकायादि में मिश्र पृथ्वीकायादि के ३६ भेद होते हैं । ऐसे कुल १४४ भेद होते हैं, तीन चतुर्भंगी के ४३२ भेद होते हैं । किसी भी भेद में साधु को भिक्षा लेना न कल्पे । यदि वह 'छर्दित दोष' युक्त भिक्षा ग्रहण करे तो - १. आज्ञाभंग, २. अनवस्था, ३. मिथ्यात्व, ४. संयम विराधना, ५. आत्म विराधना, ६. प्रवचन विराधना आदि दोष लगते हैं । इसी प्रकार औद्देशिकादि दोषयुक्त भिक्षा लेने में भी मिथ्यात्व आदि दोष लगते हैं यह समझ लेना। गवेषणा और ग्रहण एषणा के दोष बताये । अब ग्रासैषणा के दोष बताते हैं - सूत्र - ६७१-६७६ ग्रास एषणा के चार निषेप हैं - १. नाम ग्रासैषणा, २. स्थापना ग्रासैषणा, ३. द्रव्य ग्रासैषणा, ४. भाव ग्रासैषणा । द्रव्य ग्रासैषणा में मत्स्य का दृष्टान्त । नाम ग्रासैषणा - ग्रासएषणा ऐसा किसी का नाम होता । स्थापना ग्रासैषणा - ग्रासएषणा की कोई आकृति बनाई हो । द्रव्य ग्रासैषणा के तीन भेद हैं - सचित्त, अचित्त या मिश्र । भाव ग्रासैषणा के दो भेद हैं - आगम भावग्रासैषणा और नोआगम भावग्रासैषणा । आगम भावग्रासैषणा का ज्ञाता एवं उसमें उपयोगवाला नोआगम भावग्रासैषणा के दो भेद - प्रशस्त एवं अप्रशस्त । प्रशस्त संयोजनादि पाँच दोषयुक्त आहार करना कल्पे । द्रव्य ग्रासैषणा का दृष्टांत - कोई एक मच्छीमार मच्छी पकड़ने सरोवर गया, काँटे में गल माँस का टुकड़ा पीरोकर सरोवर में डाला । उस सरोवर में एक बुद्धिमान एवं वृद्ध मत्स्य था । उसने वहाँ आकर सावधानी से आसपास का माँस खा लिया । पूँछ से काँटे को हिलाकर चला गया । मच्छीमार ने समझा कि मच्छी फँस गई है । काँटा बाहर नीकाला तो वहाँ न मच्छी थी न माँस । तीन बार ऐसा ही हुआ । मच्छीमारने सोचा कि ऐसा क्यों होता है ? तब मच्छीने बताया कि हे मच्छीमार ! सुन - एक दफा मैं प्रमाद में था, एक बगले ने मुझे पकड़ा । बगला मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 52
SR No.034710
Book TitleAgam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 2, & agam_pindniryukti
File Size2 MB
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