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________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, ‘पिंडनियुक्ति' भक्ष्य को उछालकर फिर खा जाता है । बगले ने मुझे ऊंचे उछाला | मैंने सोचा कि यदि मैं उसके मुख में गिरुंगा तो वह मुझे खा जाएगा, इसीलिए मं तीर्छा गिरा, इस प्रकार तीन दफा हुआ और मैं भाग नीकला । इक्कीस बार जाल में से बच नीकला । एक दफा तो मच्छीमार के हाथ में आने के बाद भी भाग नीकला । ऐसा मेरा पराक्रम है। तु मुझे पकड़ना चाहता है ? यह कैसा तुम्हारा निर्लज्जत्व है ? इस दृष्टान्त का उपनयन -सार इस प्रकार है । मछलियाँ के स्थान पर साधु, माँस के स्थान पर आहार पानी, मछवारे के स्थान पर रागादि दोषसमूह । जिस प्रकार मछली किसी प्रकार फँसी न हो ऐसे साधु को भी दोष न लगे उस प्रकार से आहार ग्रहण करे, किसी दोष में न फँसे । १६ उद्गम के, १६ उत्पादना के और १० एषणा के ४२ दोषरहित आहार पाने के बाद साधुको आत्माशिक्षा देनी चाहिए कि, 'हे जीव ! तुम किसी दोष में न फँसे और ४२ दोष रहित आहार लाए हो, तो अब लेते समय मूर्छावश होकर रागद्वेष में न फँसो उसका खयाल रखना।' सूत्र-६७७-६८३ अप्रशस्त भावग्रासएषणा - उसके पाँच प्रकार हैं वो इस प्रकार - संयोजना, खाने के दो द्रव्य स्वाद के लिए इकट्ठे करना । प्रमाण - जरुरत से ज्यादा आहार खाना । अंगार - खाते समय आहार की प्रशंसा करना । धूम्र - खाते समय आहार की नींदा करना । कारण - आहार लेने के छह कारण सिवा आहार लेना। संयोजना यानि द्रव्य इकट्ठा करना । वो दो प्रकार से द्रव्य इकट्ठा करना और भाव से इकट्ठा करना । द्रव्य से इकट्ठा करना । वो दो प्रकार से बाह्य संयोजना, अभ्यंतर संयोजना । बाह्य संयोजना स्वाद की खातिर दो द्रव्य दूध, दहीं आदि में शक्कर आदि मिलाना । उपाश्रय के बाहर गोचरी के लिए गए हो तो वहाँ दो द्रव्य इकट्ठा करना यानि बाह्य संयोजना । अभ्यंतर संयोजना - उपाश्रय में आकर खाते समय स्वाद की खातिर दो द्रव्य इकट्ठा करना वो तीन प्रकार से । पात्र में, हाथ में और मुँह में यानि अभ्यंतर संयोजना । गोचरी के लिए घूमने से देर लगे ऐसा हो तो सोचे कि, 'यदि यहाँ दो द्रव्य इकट्ठे करूँगा तो तो स्वाद बिगड़ जाएगा, इसलिए खाते समय इकट्ठे करूँगा । ऐसा सोचकर दोनों द्रव्य अलग-अलग ले । फिर उपाश्रय में आकर खाते समय दो द्रव्य मिलाए । पात्र संयोजना - अलग अलग द्रव्य पात्र में मिलाकर खाए । हस्त संयोजना - नीवाला हाथ में फिर उस पर दूसरी चीज डालकर खाए । मुख संयोजना - मुँह में नीवाला डाले उपर से प्रवाही या दूसरी चीज लेकर यानि मंडक आदि मुँह में ले फिर गुड़ आदि मुँह में ले ऐसे दो चीज मिलाकर खाए । संयोजना से होनेवाले दोष -संयोजना रस की आसक्ति करनेवाली है आत्मा ज्ञानावरणीय आदि कर्म बँध करता है । संसार बढ़ता है । भवान्तर में जीव को अशाता होती है। अनन्तकाल तक वेदन योग्य अशुभ कर्म बँधता है । इसलिए साधु ने बाह्य या अभ्यंतर संयोजना नहीं करनी चाहिए । अपवाद - हरएक संघाट्टक को गोचरी ज्यादा आ गई हो, खाने के बाद भी आहार बचा हो तो परठवना न पड़े इसलिए दो द्रव्य मिलाकर खाए तो दोष नहीं है । ग्लान के लिए द्रव्य संयोजना कर सकते हैं | राजपुत्रादि हो और अकेला आहार गले से उतर न रहा हो तो संयोजना करे । नवदीक्षित हो परिणत न हुआ हो तो संयोजना करे । या रोगादि के कारण से संयोजना करने में दोष नहीं है। सूत्र - ६८४-६९६ प्रमाण दोष जो आहार करने से ज्ञानाभ्यास वैयावच्च आदि करने में और संयम के व्यापार में उस दिन और दूसरे दिन और आहार खाने का समय न हो तब तक शारीरिक बल में हानि न पहुँचे उतना आहार प्रमाणसर कहलाता है । नाप से ज्यादा आहार खाने से प्रमाणातिरिक्त दोष बने और उससे संयम और शरीर को नुकसान हो सामान्य से पुरुष के लिए बत्तीस नीवाले आहार और स्त्री के लिए अठ्ठाईस नीवाले आहार नापसर है। कुक्कुटी - कुकड़ी के अंड़े जितना एक नीवाला गिने । कुक्कुटी दो प्रकार की । १. द्रव्य कुक्कुटी और २. भाव कुक्कुटी । द्रव्य कुक्कुटी - दो प्रकार से १. उदर कुक्कुटी, २. गल कुक्कुटी । उदरकुक्कुटी - जितना आहार लेने से पेट भरे उतना आहार | गल कुक्कुटी - पेट के लिए काफी आहार का बत्तीसवाँ हिस्सा या जितना मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 53
SR No.034710
Book TitleAgam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 2, & agam_pindniryukti
File Size2 MB
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