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आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनियुक्ति' बताए दोष को जिस अवसर में सँभावना न हो और आसपास में दूसरे लोग न हो तो भिक्षा लेना कल्पे ।
आरूढ - पाँव में पादुका-जूते आदि पहना हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । हस्तान्दु- दोनों हाथ लकड़े की हेंड़ में डाले हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । निगड़ - पाँव में बेड़ियाँ हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । छिन्नहस्तवाद - हाथ या पाँव कटे हुए हो ऐसे ह्ठे या लंगड़े से भिक्षा लेना न कल्पे ।
त्रिराशिक- नपुंसक से भिक्षा लेना न कल्पे । नपुंसक से भिक्षा लेने में स्व-पर और उभय का दोष रहा है। नपुंसक से बार-बार भिक्षा लेने से काफी पहचान होने से साधु को देखकर उसे वेदोदय हो और कुचेष्टा करे यानि दोनों को मैथुनकर्म का दोष लगे । बार-बार न जाए लेकिन किसी दिन जाए तो मैथुनदोष का अवसर न आए, लेकिन लोगों में जुगुप्सा होती है कि, यह साधु नपुंसक से भी भिक्षा ग्रहण करते हैं, इसलिए साधु भी नपुंसक होंगे। इत्यादि दोष लगे।
अपवाद - नपुंसक अनासेवी हो, कृत्रिम प्रकार से नपुंसक हुआ हो, मंत्र, तंत्र से नपुंसक हुआ हो, श्राप से नपुंसक हुआ हो तो उससे भिक्षा लेना कल्पे ।
गर्विणी - पास में प्रसवकाल-गर्भ रहे नौ महिने हए हो ऐसे गर्भवाली स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे । गर्भवाली स्त्री से भिक्षा लेने में स्त्री को उठते-बैठते भीतर रहे गर्भ के जीव को दर्द होता है, इसलिए उनसे भिक्षा मत लेना । अपवाद - गर्भ रहे नौ महीने न हए हो, भिक्षा देने में कष्ट न हो, बैठी हो तो बैठे-बैठे और खड़ी हो तो खड़े-खड़े भिक्षा दे तो कल्पे । जिनकल्पी साधु के लिए तो जिस दिन गर्भ रहे उसी दिन से लेकर जब तक बच्चा माँ का दूध पीता हो तब तक उस स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे ।
बालवत्सा - माँ का दूध पीता हुआ बच्चा गोद में हो और माँ बच्चे को छोड़कर भिक्षा दे तो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । बच्चे को जमीं पर या माँची में रखकर भिक्षा दे तो शायद उस बच्चे को बिल्ली या कूत्ता आदि माँस का टुकड़ा या खरगोश का बच्चा समझकर मुँह से पकड़कर ले जाए तो बच्चा मर जाए । भिक्षा देते समय उस स्त्री
हाथ खरडित हो उन कर्कश हाथ से बच्चे को वापस हाथ में लेने से बच्चे को दर्द हो इत्यादि दोष के कारण से उन स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - बच्चा बड़ा हो, स्तनपान न करता हो तो ऐसी स्त्री से भिक्षा लेना कल्पे। क्योंकि वो बड़ा होने से उसे उठा ले जाना मुमकीन नहीं है।
भोजन कर रहे हो - उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । भोजन कर रहे हो और भिक्षा देने के लिए उठे तो हाथ धोए तो अप्काय आदि की विराधना होती है । हाथ साफ किए बिना दे तो लोगों में जुगुप्सा हो कि, झूठी भिक्षा लेते हैं । इसलिए भोजन करते हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - हाथ झूठे न हए हो या भोजन करने की शुरूआत न की हो तो उनसे भिक्षा लेना कल्पे ।
मथ्नंती - दहीं वलोती हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । दहीं आदि वलोती हो तो वो संसक्त हो तो वो संसक्त दहीं आदि से खरड़ित हाथ से भिक्षा देने से वो रस जीव का विनाश है इसलिए उनके हाथ से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद -वलोणा पूरा हो गया हो, हाथ सूखे हो तो लेना कल्पे या फिर वलोणा में हाथ न बिगाड़े हो तो लेना कल्पे
भज्जंती - चूल्हे पर तावड़ी आदि में चने आदि पकाती हो तो भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - चूल्हे पर से तावड़ी उतार ली हो या संघट्टो न हो तो कल्पे । दलंती - चक्की आदि में आँटा पीसती हो तो भिक्षा लेना न कल्पे ।
अपवाद - साँबिल ऊपर किया हो और साधु आ जाए तो उठाए हुए साँबिल में कण न चिपके हो तो साँबिल निर्जीव जगह में रखकर दो तो लेना कल्पे ।
पिसंती - पत्थर, खाणीया आदि में पिसती हो वो भिक्षा न कल्पे । अपवाद - पिस लिया हो, सचित्त का संघट्टो न हो उस समय साधु आए और दे तो लेना कल्पे ।
पिजंती - रूई अलग करती हो तो लेना न कल्पे ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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