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आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, ‘पिंडनियुक्ति' सुनकर लोग इकट्ठे हो गए और साधु की नींदा करने लगे । यह लोग केवल वेशधारी है, लूँटारे है, साधुता नहीं है । ऐसा-ऐसा बोलने लगे । आचार्य भगवंत ने शासन का अवर्णवाद होते देखा और आचार्य भगवंत ने उस साधु को बुलाकर, फिर से ऐसा मत करना ऐसा कहकर ठपका दिया । इस प्रकार शासन का ऊड्डाह आदि दोष रहे हैं, इसलिए इस प्रकार बुजुर्ग की गैर-मौजूदगी में छोटे बच्चे से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - वडील आदि मौजूद हो और वो दिलवाए तो छोटे बच्चे से भी भिक्षा लेना कल्पे ।
वृद्ध - ६० साल मतांतर से ७० साल की उम्रवाले वृद्ध से भिक्षा लेना न कल्पे । क्योंकि काफी वृद्ध से भिक्षा लेने में कई प्रकार के दोष रहे हैं । बुढ़ापे के कारण से उसके मुँह से पानी नीकल रहा हो इसलिए देते-देते देने की चीज में भी मुँह से पानी गिरे, उसे देखकर जुगुप्सा होती है कि, 'कैसी बूरी भिक्षा लेनेवाले हैं ?' हाथ काँप रहे तो उससे चीज गिर जाए उसमें छकाय जीव की विराधना होती है । वृद्ध होने से देते समय खुद गिर जाए, तो जमीं पर रहे जीव की विराधना होती है, या वद्ध के हाथ-पाँव आदि तूट जाए या ऊतर जाए । वृद्ध यदि घर का नायक न हो तो घर के लोगों को उन पर द्वेष हो कि यह वृद्ध सब दे देता है या तो साधु पर द्वेष करे या दोनों पर द्वेष करे।
अपवाद - वृद्ध होने के बावजूद भी मुँह से पानी न नीकले, शरीर न काँपे, ताकतवर हो, घर का मालिक हो, तो उसका दिया हुआ लेना कल्पे ।
मत्त - दारू आदि पीया हो, उससे भिक्षा लेना न कल्पे । दारू आदि पीया होने से भान न हो, इसलिए शायद साधु को चिपक जाए या बकवास करे कि, अरे ! मुंडीआ ! क्यों यहाँ आए हो? ऐसा बोलते हुए मारने के लिए आए या पात्रादि तोड़ दे, या पात्र में यूँक दे या देते-देते दारू का वमन करे, उससे कपड़े, शरीर या पात्र उल्टी से खरड़ित हो जाए । यह देखकर लोग साधु की नींदा करे कि, इन लोगों को धिक्कार है, कैसे अपवित्र है कि ऐसे दारू पीनेवाले से भी भिक्षा ग्रहण करते हैं । अपवाद - यदि वो श्रावक हो, परवश न हो यानि भान में हो और आसपास में लोग न हो तो दिया हुआ लेना कल्पे ।
उन्मत्त - महासंग्राम आदि में जय पाने से अभिमानी होकर या भून आदि का वमल में फँसा हो उससे उन्मत्त, उनसे भी भिक्षा लेना न कल्पे । उन्मत्त में ऊपर के मत्त में कहे अनुसार वमनदोष रहित के दोष लगते हैं।
अपवाद - वो पवित्र हो, भद्रक हो और शान्त हो तो लेना कल्पे ।
वेपमान - शरीर काँप रहा हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । शरीर काँपने से उनके हाथ से भिक्षा देते शरीर गिर जाए या पात्र में डालते शरीर बाहर गिरे या भाजन आदि हाथ से नीचे गिर जाए, तो भाजन तूट जाए, छह काय जीव की विराधना आदि होने से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - शरीर काँप रहा हो, लेकिन उसके हाथ न काँपते हो तो कल्पे । ज्वरित - बुखार आ रहा हो तो उससे लेना न कल्पे । ऊपर के अनुसार दोष लगे अलावा उसका बुखार शायद साधु में संक्रमे, लोगों में उड्डाह हो कि, यह कैसे आहार लंपट है बुखारवाले से भिक्षा लेते हैं। इसलिए बुखारवाले से भिक्षा लेना न कल्पे ।
अपवाद - बुखार उतर गया हो- भिक्षा देते समय बुखार न हो तो कल्पे ।
अंध - अंधो से भिक्षा लेना न कल्पे । शासन का ऊड्डाह होता है कि, यह अंधा दे सके ऐसा नहीं है फिर भी यह पेटभरे साधु उनसे भिक्षा ग्रहण करते हैं । अंधा देखता नहीं होने से जमीं पर रहे छह जीवनीकाय विराधना करे, पत्थर आदि बीच में आ जाए तो नीचे गिर पड़े तो उसे लगे, भाज उठाया हो और गिर पड़े तो जीव की विराधना हो। देते समय बाहर गिर जाए आदि दोष होने से अंधे से भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - श्रावक या श्रद्धालु अंधे से उसका पुत्र आदि हाथ पकड़कर दिलाए तो भिक्षा लेना कल्पे ।
प्रगलित - गलता को आदि चमड़ी की बीमारी जिसे हुई हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । भिक्षा देने से उसे कष्ट हो, गिर जाए, दस्त-पिशाब अच्छी प्रकार से साफ न कर सके तो अपवित्र रहे । उनसे भिक्षा लेने में लोगों को जुगुप्सा हो, छह जीवनीकाय की विराधना आदि दोष लगे, इसलिए उनसे भिक्षा लेना न कल्पे । अपवाद - ऊपर
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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