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आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, "पिंडनियुक्ति' पृथ्वीकाय से कलाड़ी आदि हो और उसमें सचित्त चीज हो वो परम्पर ढंके हुए कहलाते हैं । उसी प्रकार सचित्त पानी से लड्डू आदि ढंके हुए हो तो सचित्त अप्काय अनन्तर ढंके हुए और लड्डू किसी बरतन आदि में रखे हो और वो बरतन आदि पानी से ढंका हो तो वो परम्पर ढंका हुआ कहलाता है । इस प्रकार सभी भाँगा में समझना ।
ढंके हुए में १. भारी, वजनदार और २. हलका ऐसे दो प्रकार होते हैं । अचित्त पृथ्वीकायादि भारी से ढंका हुआ । अचित्त पृथ्वीकायादि भारी हलके से ढंका हुआ । अचित्त पृथ्वीकायादि हलकी भारी से ढंका हुआ अचित्त पृथ्वीकायादि हलका हलके से ढंका हुआ । इन हर एकमें पहले और तीसरे भाँगा का न कल्पे, दूसरे और चौथे भाँगा का कल्पे । सचित्त और मिश्र में चारों भाँगा का न कल्पे । भारी चीज उठाने से या रखने से लगना आदि और जीव विराधना की संभावना हो रही है, इसलिए ऐसा ढंका हुआ हो उसे उठाकर देवे तो वो साधु को लेना न कल्पे । सूत्र-६०५-६१३
साधु को देने के लिए अनुचित सचित्त अगर सचित्त वस्तु जो भाजन में रही हो वो भाजन में से वो अनुचित चीज दूसरी सचित्त आदि चीज में या दूसरे भाजन में डालकर वो खाली किए गए भाजन से साधु को दूसरा जो कुछ योग्य अशन आदि दिया जाए वो अशन आदि संहयत दोषवाला माना जाता है । इसमें भी निक्षिप्त की प्रकार चतुर्भंगी और भाँगा बनते हैं।
सचित्त, अचित्त और मिश्र चीज दूसरे में बदलकर दी जाए, तो संहृत दोषवाला कहा जाता है । यहाँ डालने को संहरण कहते हैं । इसमें सचित्त मिश्र और अचित्त की, सचित्त एवं मिश्र और अचित्त उन पदों की तीन चतुर्भंगी होती है। उसमें हरएक के पहले तीन भाँगा में न कल्पे, चौथे में किसी में कल्पे, किसी में न कल्पे । निक्षिप्त की प्रकार इसमें भी ४३२ भेद बने, उसे अनन्तर और परम्पर भेद मानना।।
चीज बदलने में जिसमें डालना है, वो और जो चीज डालनी है वो ऐसे दोनों के चार भाँगा इस प्रकार होते हैं । सूखी चीज सूखे में डालना । सूखी चीज आर्द्र चीज में, आर्द्र चीज सूखे में, आई चीज आर्द्र में डालना।
इन हरएक में चार-चार भाँगा होते हैं । कुल सोलह भाँगा होते हैं । थोड़ी सूखी चीजें थोड़े सूखे में बदलना, थोड़ी सूखी चीज ज्यादा सूखे में बदलना, ज्यादा सूखी चीज थोड़े सूखे में बदलना, ज्यादा सूखी चीज ज्यादा सूखे में बदलना, थोड़ी सूखी चीजें थोड़े आर्द्र में बदलना, थोड़ी सूखी चीज ज्यादा आर्द्र में बदलना, ज्यादा सूखी चीज थोड़े आर्द्र में बदलना, ज्यादा सूखी चीज आर्द्र में बदलना, थोड़ी आई चीज थोड़े सूखे में डालना, थोड़ी आर्द्र चीज ज्यादा आर्द्र में डालना, ज्यादा आर्द्र थोडे आर्द्र में डालना, ज्यादा आर्द्र ज्यादा आर्द्र में डालना।।
हलके भाजन में जहाँ कम से कम, उसमें भी सूखा या सूखे में आर्द्र, आर्द्र में सूखा या आर्द्र में आर्द्र बदला जाए तो वो आचीर्ण चीज साधु को लेना कल्पे, उसके अलावा अनाचीर्ण चीज कल्पे । सचित्त और मिश्र भाँगा की एक भी चीज न कल्पे और फिर भारी भाजन से बदले तो भी न कल्पे । क्योंकि भारी बरतन होने से देनेवाले को उठाने में – रखने में श्रम लगे, दर्द होना मुमकीन है । और बरतन गर्म हो और शायद गिर जाए या तूट जाए तो पृथ्वीकाय आदि जीव की विराधना होती है। सूत्र- ६१४-६४३
नीचे बताए गए चालीस प्रकार के दाता के पास से उत्सर्ग मार्ग से साधु को भिक्षा लेना न कल्पे । बच्चा - आठ साल से कम उम्र का हो उससे भिक्षा लेना न कल्पे । बुजुर्ग हाजिर न हो तो भिक्षा आदि लेने में कई प्रकार के दोष रहे हैं । एक स्त्री नई-नई श्राविका बनी थी । एक दिन खेत में जाने से उस स्त्री ने अपनी छोटी बेटी को कहा कि, 'साधु भिक्षा के लिए आए तो देना ।' एक साधु संघाटक घूमते-घूमते उसके घर आए । बालिका वहोराने लगी। छोटी बच्ची को मुग्ध देखकर बड़े साधु ने लंपटता से बच्ची के पास से माँगकर सारी चीजें वहोर ली । माँ ने कहा था इसलिए बच्ची ने सब कुछ वहोराया । वो स्त्री खेत से आई तब कुछ भी न देखने से गुस्सा होकर बोली कि, क्यों सबकुछ दे दिया ? बच्ची ने कहा कि, माँग-माँगकर सबकुछ ले लिया । स्त्री गुस्सा हो गई और उपाश्रय आकर चिल्लाकर बोलने लगी कि, तुम्हारा साधु ऐसा कैसा कि बच्ची के पास से सबकुछ ले गए ? स्त्री का चिल्लाना मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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