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________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' आदि से दूसरों को बताए। सूत्र-३५६-३८७ स्थानस्थित - गाँव में प्रवेश करना हो, उस दिन सुबह का प्रतिक्रमण आदि करके, स्थापना कुल, प्रत्यनीक कुल, प्रान्तकुल आदि का हिस्सा करे इसलिए कुछ घर में गोचरी के लिए जाना, कुछ घर में गोचरी के लिए न जाना । फिर अच्छे सगुन देखकर गाँव में प्रवेश करे । वसति में प्रवेश करने से पहले कथालब्धिसम्पन्न साधु को भेजे । वो साधु गाँव में जाकर शय्यातर के आगे कथा करे फिर आचार्य महाराज का आगमन होने पर खड़े होकर विनय सँभाले और शय्यातर कहे कि, यह हमारे आचार्य भगवंत हैं । आचार्य भगवंत कहे कि, इस महानुभाव ने हमको वसति दी है । यदि शय्यातर आचार्य के साथ बात-चीत करे तो अच्छा, न करे तो आचार्य उसके साथ बात-चीत करे क्योंकि यदि आचार्य शय्यातर के साथ बात न करे, तो शय्यातर को होता है कि, यह लोग भी योग्य नहीं जानते । वसति में आचार्य के लिए तीन जगह रखकर स्थविर साधु दूसरे साधुओं के लिए रत्नाधिक के क्रम से योग्य जगह बाँट दे । क्षेत्रप्रत्युप्रेक्षक आए हुए साधुओं को ठल्ला, मात्र की भूमि, पात्रा रंगने की भूमि, स्वाध्याय भूमि आदि दिखाए और साधु में जो किसी तपस्वी हो, किसी को खाना हो, तो जिनचैत्य दर्शन करने के लिए जाते हुए स्थापनाकुल श्रावक के घर दिखाए । प्रवेश के दिन किसी को उपवास हो तो वो मंगल है । जिनालय जाते समय आचार्य के साथ एक-दो साधु पात्रा लेकर जाए । क्योंकि वहाँ किसी गृहस्थ को गोचरी देने की भावना ही तो ले सके । यदि पात्रा न हो तो गृहस्थ का भरोसा तूट जाए या साधु ऐसा कहे कि, 'पात्रा लेकर आएंगे।' तो गृहस्थ वो चीज रख दे, इसलिए स्थापना दोष लगे । सभी साधु को साथ में नहीं जाना चाहिए, यदि सब साथ में जाए तो गहस्थ को ऐसा होता है कि, किसको , और किसको न , इसलिए साधु को देखकर भय लगे या तो ऐसा हो कि, 'यह सभी ब्राह्मणभट्ट जैसे भूखे हैं। इसलिए आचार्य के साथ तीन, दो या एक साधु पात्रा लेकर जाए और गृहस्थ बिनती करे तो घृत आदि वहोरे । यदि उस क्षेत्र में पहले मासकल्प न किया हो यानि पहले आए हुए हों, तो परिचित साधु चैत्यदर्शन करने के लिए जाए तब या गोचरी के लिए जाए तब दान देनेवाले आदि के कुल दिखाए या तो प्रतिक्रमण करने के बाद दानादि कुल कहे । प्रतिक्रमण करने के बाद आचार्य क्षेत्रप्रत्युप्रेक्षक को बुलाकर स्थापनादि कुल पूछे-क्षेत्रप्रत्युप्रेक्षक वो बताए । क्षेत्रप्रत्युप्रेक्षक को पूछे बिना साधु स्थापनादि कुल में जाए तो संयम विराधना, आत्मविराधना आदि दोष हो । स्थापना कुल में गीतार्थ संघाटक जाए इस प्रकार स्थापनादि कुल स्थापन करने के कारण यह है कि आचार्य ग्लान प्राघुर्णक आदि को उचित भिक्षा मिल सके । यदि सभी साधु स्थापना कुल में भिक्षा लेने जाए तो गृहस्थ को कदर्थना हो और आचार्य आदि के प्रायोग्य द्रव्य का क्षय हो । जिससे चाहे ऐसी चीज न मिले । जिस प्रकार किसी पुरुष पराक्रमी शिकारी कुत्ते को छू-छू करने के बावजूद कुत्ता दौड़े नहीं और काम न करे । इस प्रकार बार-बार बिना कारण स्थापनादि कुल में से आहार आदि ग्रहण करने से जब ग्लान, प्राघुर्णक आदि के लिए जरुर होती है तब आहारादि नहीं मिल सकते । क्योंकि उसने काफी साधुओं को घृतादि देने के कारण से घृत आदि खत्म हो जाए । प्रान्त-विरोधी गृहस्थ हो तो साधु को घी आदि दे दिया हो तो स्त्री को मारे या मार भी डाले या उस पर गुस्सा करे कि तुने साधुओं को घृतादि दिया इसलिए खत्म हो गया, भद्रक हो तो नया खरीदे या करवाए । स्थापना कुल रखने से ग्लान, आचार्य, बाल, वृद्ध, तपस्वी प्राघुर्णक आदि की योग्य भक्ति की जाती है, इसलिए स्थापना कुल रखने चाहिए, वहाँ कुछ गीतार्थ के अलावा सभी साधु को नहीं जाना । कहा है कि आचार्य की अनुकंपा भक्ति से गच्छ की अनुकंपा, गच्छ की अनुकंपा से तीर्थ की परम्परा चलती है। इस स्थापनादि कुल में थोड़े-थोड़े दिन के फाँसले से भी कारण बिना जाना । क्योंकि उन्हें पता चले कि यहाँ कुछ साधु आदि रहे हुए हैं । इसके लिए गाय और बगीचे का दृष्टांत जानना । गाय को दोहते रहे और बगीचे में से फूल लेते रहे तो हररोज दूध, फूल मिलते रहे, न ले तो उल्टा सूख जाए । सूत्र-३८८-४२८ दश प्रकार के साधु आचार्य की वैयावच्च सेवा के लिए अनुचित है । आलसी ! घसिर ! सोए रहनेवाला । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 22
SR No.034709
Book TitleAgam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 1, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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