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________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति दुपहर में जाने में रास्ते में चोर आदि का भय हो तो सुबह में दूसरे गाँव में जाए । उपाश्रय में जाते ही नीसिहि कहे । वहाँ रहे साधु निसीहि सुनकर सामने आए | खा रहे हो तो मुँह में रखा हआ नीवाला खा ले, हाथ में लिया ह नीवाला पात्रा में वापस रख दे, सामने आकर आए हुए साधु का सम्मान करे । आए हुए साधु संक्षेप से आलोचना करके उनके साथ आहार करे । यदि आए हुए साधुओं ने खाया हो, तो वहाँ रहे साधुओं को कहे कि हमने खा लिया है अब तुम खाओ । आए हुए साधु को खाना हो तो यदि वहाँ लाया हुआ आहार बराबर हो तो सभी साथ में खाए और कम हो तो आहार आए हुए साधुओं को दे और अपने लिए दूसरा आहार लाकर खाए । आए हुए साधु की तीन दिन से आहार पानी आदि से भक्ति करनी चाहिए । शक्ति न हो तो बालवृद्ध आदि की भक्ति करनी चाहिए । आए हए साधु उन गाँव में गोचरी के लिए जाए और वहाँ रहे साध में तरुण दसरे गाँव में गोचरी के लिए जाए। सूत्र-३३७-३५५ वसति - तीन प्रकार की होती है । १. बड़ी, २. छोटी, ३. प्रमाणयुक्त । सबसे पहले प्रमाणयुक्त वसति ग्रहण करना । ऐसी न हो तो छोटी वसति ग्रहण करनी, छोटी भी न हो तो बड़ी वसति ग्रहण करना । यदि बड़ी वसति में ठहरे हो तो वहाँ दूसरे लोग दंडपासक, पारदारिका आदि आकर सो जाए, इसलिए वहाँ प्रतिक्रमण, सूत्रपोरिसी, अर्थपोरिसी करते हुए और आते जाते लोगों में किसी असहिष्णु हो तो चिल्लाए, उससे झगड़ा हो, पात्र आदि तट जाए. ठल्ला मात्रा की शंका रोके तो बीमारी आदि हो. दर न जा सके. देखी हई जगह में शंका टाल दे तो संयम विराधना हो । सबके देखते ही शंका टाले तो प्रवचन की लघुता हो । रात को वसति में पूंजते-पूंजते जाए, तो वो देखकर किसी को चोर का शक हो और शायद मार डाले । सागारिक-गृहस्थ को स्पर्श हो जाए तो उस स्त्री को लगे कि, यह मेरी उम्मीद रखता है। इसलिए दूसरों को कहे कि, 'यह मेरी उम्मीद करता है। सुनकर लोग गुस्सा हो जाए । साधु को मारे, दिन में किसी स्त्री या नपुंसक की खूबसूरती देखकर साधु पर रागवाला बने, इसलिए रात को वहीं सो जाए और साधु को बलात्कार से ग्रहण करे इत्यादि दोष बड़ी वसति में उतरने में रहे हैं। इसलिए बड़ी वसति में न उतरना चाहिए । छोटी वसति में उतरने से रात को आते-जाते किसी पर गिर पड़े, जागते ही उसे चोर की शंका हो । रात को नहीं देख सकने से युद्ध हो, उसमें पात्र आदि तूट जाए इसलिए संयमआत्मविराधना हो, इसलिए छोटी वसति में नहीं उतरना चाहिए । प्रमाणसर वसति में उतरना वो इस प्रकार एक एक साधु के लिए तीन तीन हाथ मोटी जगह रखे एक हाथ को चार अंगूल बड़ा संथारा फिर बीस अंगूल जगह खाली फिर एक हाथ जगह में पात्रादि रखना, उसके बाद दूसरे साधु के आसन आदि करना । पात्रादि काफी दूर रखे तो बिल्ली, चूहाँ आदि से रक्षा न हो सके । काफी पास में पात्रादि रखे तो शरीर घूमाते समय ऊपर-नीचे करने से पात्रादि को धक्का लगे तो पात्रादि तूट जाए । इसलिए बीस अंगूल का फाँसला हो तो, किसी गृहस्थ आदि झोर करके बीच में सो जाए, तो दूसरे दोष लगे । तो ऐसे स्थान के लिए वसति का प्रमाण इस प्रकार जानना । एक हाथ देह, बीस अंगूल खाली, आँठ अंगूल में पात्रा, फिर बीस अंगूल खाली, फिर दूसरे साधु, इस प्रकार तीन हाथ से एक साधु से दूसरा साधु आता है । बीच में दो हाथ का अंतर रहे । एक साधु से दूसरे साधु के बीच दो हाथ की जगह रखना । दो हाथ से कम फाँसला हो तो, दूसरों को साधु का स्पर्श हो जाए तो भुक्तभोगी की पूर्व क्रीड़ा का स्मरण हो जाए । कुमार अवस्था में दीक्षा ली हो तो उसे साधु का स्पर्श होने से स्त्री का स्पर्श कैसे होंगे ? उसकी नियत जगे । इसलिए बीचमें दो हाथ का फाँसला रखना चाहिए, इससे एक-दूसरे को कलह आदि भी न हो । दीवार से एक हाथ दूर संथारा करना । पाँव के नीचे भी आने-जाने का रास्ता रखना । बडी वसति हो तो दीवार से तीन हाथ दूर संथारा करना । प्रमाणयुक्त वसति न हो तो छोटी वसति में रात को यतनापूर्वक आना जाना । पहले हाथ से परामर्श करके बाहर नीकलना । पात्रादि खड्डा हो तो उसमें रखना । खड्डा न हो तो रस्सी बाँधकर उपर लटका दे । बड़ी वसति में ठहरना पड़े तो साधु को दूर-दूर सो जाना । शायद वहाँ कुछ लोग आकर कहे कि, 'एक ओर इतनी जगह में सो जाओ। तो साधु एक ओर हो जाए, वहाँ परदा या खडी से निशानी कर ले । वहाँ दूसरे गृहस्थ आदि हो तो, आते जाते प्रमार्जना आदि न करे । और 'आसज्जा-आसज्जा' भी न करे । लेकिन खाँसी मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 21
SR No.034709
Book TitleAgam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 1, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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