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आगम सूत्र ४०, मूलसूत्र-१, 'आवस्सय'
अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-३-वंदन सूत्र-१०
___ (शिष्य कहता है) हे क्षमा (आदि दशविध धर्मयुक्त) श्रमण, (हे गुरुदेव !) आपको मैं इन्द्रिय और मन की विषय विकार के उपघात रहित निर्विकारी और निष्पाप प्राणातिपात आदि पापकारी प्रवृत्ति रहित काया से वंदन करना चाहता हूँ। मुझे आपकी मर्यादित भमि में (यानि साडे तीन हाथ अवग्रह रूप-मर्यादा के भीतर) नजदीक आने की (प्रवेश करने की) अनुज्ञा दो।
निसीही (यानि सर्व अशुभ व्यापार के त्यागपूर्वक) (यह शब्द बोलकर अवग्रह में प्रवेश करके फिर शिष्य बोल)
___ अधोकाय यानि कि आपके चरण को मैं अपनी काया से स्पर्श करता हूँ । इसलिए आपको जो कुछ भी तकलीफ हो उसकी क्षमा देना । अल्प ग्लानीवाले आपके दिन सुख-शान्ति से व्यतीत हुआ है ? आपको संयमयात्रा वर्तती है ? आपको इन्द्रिय और कषाय उपघात रहित वर्तते हैं ? हे क्षमाश्रमण ! दिन के दोहरान किए गए अपराध को मैं खमाता हूँ । आवश्यक क्रिया के लिए अब मैं अवग्रह के बाहर जाता हूँ । (ऐसा बोलकर शिष्य अवग्रह के बाहर नीकलता है।)
___ दिन के दौरान आप क्षमाश्रमण की कोई भी आशातना की हो उससे मैं वापस लौटता हूँ । मिथ्याभाव से हुई आशातना के द्वारा मन, वचन, काया की दुष्ट प्रवृत्ति के द्वारा की गई आशातना से, क्रोध, मान, माया, लोभ की वृत्ति से होनेवाली आशातना से, सर्वकाल सम्बन्धी - सभी तरह के मिथ्या उपचार के द्वारा उन सभी तरह के धर्म के अतिक्रमण से होनेवाली आशातना से जो कुछ अतिचार हुआ हो उससे वो क्षमाश्रमण मैं वापस लौटता हूँ । उस अतिचरण की निन्दा करता हूँ। आप के सामने उस अतिचार की गर्दा करता हूँ। और उस अशुभ योग में प्रवर्ते मेरे भूतकालीन आत्म पर्याय का त्याग करता हूँ।
अध्ययन-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (आवस्सय) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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