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आगम सूत्र ४०, मूलसूत्र-१, 'आवस्सय'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र-६९
दिशाव्रत तीन तरह से जानना चाहिए । ऊर्ध्व-अधो-तिर्यक - दिशाव्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना चाहिए । १. ऊर्ध्व, २. अधो, ३. तिर्यक दिशा के प्रमाण का अतिक्रमण । क्षेत्र, वृद्धि और स्मृति गलती से कितना अंतर हुआ उसका खयाल न रहे वो । सूत्र - ७०-७१
उपभोग-परिभोग व्रत दो प्रकार से - भोजनविषयक परिमाण और कर्मादानविषयक परिमाण, भोजन सम्बन्धी परिमाण करनेवाले श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए | अचित्त आहार करे, सचित्त प्रतिबद्ध आहार करे, अपक्व दुष्पक्व आहार करे, तुच्छ वनस्पति का भक्षण करे । कर्मादान सम्बन्धी नियम करनेवाले को यह पंद्रह कर्मादान जानने चाहिए । अंगार, वन, शकट, भाटक, स्फोटक वो पाँच कर्म, दाँत, लाख, रस, केश, विष वो पाँच वाणिज्य, यंत्र पीलण - निलांछन-दवदान-जलशोषण और असत्ति पोषण । सूत्र-७२
अनर्थदंड चार प्रकार से बताया है वो इस प्रकार - अपध्यान-प्रमादाचरण-हत्याप्रदान और पापकर्मोपदेश। अनर्थदंड विरमण व्रत धारक श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए वो इस प्रकार - काम विकार सम्बन्ध से हुआ अतिचार, कुत्सित चेष्टा, मौखर्य, वाचालता, हत्या अधिकरण का इस्तमाल, भोग का अतिरेक । सूत्र-७३-७७
सामायिक यानि सावध योग का वर्जन और निरवद्य योग का सेवन ऐसे शिक्षा अध्ययन दो तरीके से बताया है । उपपातस्थिति, उपपात, गति, कषायसेवन, कर्मबंध और कर्मवेदन इन पाँच अतिक्रमण का वर्जन करना चाहिए - सभी जगह विरति की बात बताई गई है । वाकई सर्वत्र विरति नहीं होती । इसलिए सर्व विरति कहनेवाले ने सर्व से और देश से (सामायिक) बताई है । सामायिक व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना चाहिए । १. मन, २. वचन, ३. काया का दुष्प्रणिधान, ४. सामायिक में अस्थिरता और ५. सामायिक में विस्मृतिकरण। सूत्र-७८
दिव्रत ग्रहणकर्ता के, प्रतिदिन दिशा का परिमाण करना वो देशावकासिक व्रत । देशावकासिक व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए । वो इस प्रकार - बाहर से किसी चीज लाना, बाहर किसी चीज भेजना, शब्द करके मोजूदगी बताना, रूप से मोजूदगी बताना और बाहर कंकर आदि फेंकना। सूत्र - ७९
पौषधोपवास चार तरह से बताया है वो इस प्रकार - आहार पौषध, देह सत्कार पौषध, ब्रह्मचर्य पौषध और अव्यापार पौषध । पौषधोपवास, व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए, वो इस प्रकार - अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित, शय्या संथारो, अप्रमार्जित, दुष्प्रमार्जित मल-मूत्र त्याग भूमि, पौषधोपवास की सम्यक् परिपालना न करना । सूत्र-८०
___ अतिथि संविभाग यानि साधु-साध्वी को कल्पनीय अन्न-पानी देना, देश, काल, श्रद्धा, सत्कार युक्त श्रेष्ठ भक्तिपूर्वक अनुग्रह बुद्धि से संयतो को दान देना । वो अतिथि संविभाग व्रतयुक्त श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए । वो इस प्रकार - अचित्त निक्षेप, सचित्त के द्वारा ढूँढ़ना, भोजनकाल बीतने के बाद दान देना, अपनी चीजको परायी कहना, दूसरों के सुख का द्वेष करना । सूत्र-८१
इस प्रकार श्रमणोपासक धर्म में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और यावत्कथिक या इत्वरकथिक यानि
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (आवस्सय) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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