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आगम सूत्र ४०, मूलसूत्र-१, 'आवस्सय'
अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-६-पच्चक्खाण सूत्र - ६३
वहाँ (श्रमणोपासकों) - श्रावक पूर्वे यानि श्रावक बनने से पहले मिथ्यात्व छोड़ दे और सम्यक्त्व अंगीकार करे । उनको न कल्पे । (क्या न कल्पे वो बताते हैं) आजपर्यन्त अन्यतीर्थिक के देव, अन्य तीर्थिक की ग्रहण की हुई अरिहंत प्रतिमा को वंदन नमस्कार करना न कल्पे । पहले भले ही ग्रहण न की हो लेकिन अब वो (प्रतिमा) अन्यतीर्थिक ने ग्रहण की है । इसलिए उसके साथ आलाप-संलाप का अवसर बनता है । ऐसा करने से या अन्यतीर्थिक को अशन, पान, खादिम, स्वादिम देने का या पुनः पुनः जो देना पड़े, वो न कल्पे।
जो कि राजा-बलात्कार – देव के अभियोग यानि कारण से या गुरु निग्रह से, कांतार वृत्ति से इस पाँच कारण से अशन-आदि दे तो धर्म का अतिक्रमण नहीं होता।
यह सम्यक्त्व प्रशस्त है । वो सम्यक्त्व मोहनीय कर्म का क्षय और उपशम से प्राप्त होता है। प्रशम, संवेग, निर्वेद अनुकंपा और आस्तिक्य उन पाँच निशानी से युक्त हैं । उससे शुभ आत्म परिणाम उत्पन्न होता हे ऐसा कहा है।
श्रावक को सम्यक्त्व में यह पाँच अतिचार समझना, लेकिन आचरण न करना - वो शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, परपाखंडप्रशंसा, परपाखंडसंस्तव । सूत्र-६४
श्रावक स्थूल प्राणातिपात का पच्चक्खाण (त्याग) करे । वो प्राणातिपात दो तरह से बताया है। वो इस प्रकार - संकल्प से और आरम्भ से । श्रावक को संकल्प हत्या का जावज्जीव के लिए पच्चक्खाण (त्याग) करे लेकिन आरम्भ हत्या का त्याग न करे । स्थूल प्राणातिपात विरमण के इस पाँच अतिचार समझना वो इस प्रकार - वध, बंध, छविच्छेद, अतिभार और भोजन, पान का व्यवच्छेद करे । सूत्र - ६५
श्रावक स्थूल मृषावाद का पच्चक्खाण (त्याग) करे | वो मृषावाद पाँच तरीके से बताया है । कन्या सम्बन्धी झूठ, गो (चार पाँववाले) सम्बन्धी झूठ, भूमि सम्बन्धी झूठ, न्यासापहार यानि थापण पाना, झूठी गँवाही देना, स्थूल मृषावाद से विरमित श्रमणोपासक यह पाँच अतिचार जानना । वो इस प्रकार - सहसा अभ्याख्यान, रहस्य उद्घाटन, स्वपत्नी के मर्म प्रकाशित करना, झूठा उपदेश देना और झूठे लेख लिखना। सूत्र - ६६
श्रमणोपासक स्थूल अदत्तादान का पच्चक्खाण करे यानि त्याग करे । वो अदत्तादान दो तरह से बताया है वो इस प्रकार - सचित्त और अचित्त । स्थूल अदत्तादान से विरमित श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना । चोर या चोरी से लाए हुए माल-सामान का अनुमोदन, तस्कर प्रयोग, विरुद्ध राज्यातिक्रम झूठे तोल-नाप करना । सूत्र-६७
श्रमणोपासक को परदारागमन का त्याग करना या स्वपत्नी में संतोष रखे यानि अपनी पत्नी के साथ अब्रह्म आचरण में नियम रखे, परदारा गमन दो तरह से बताया है वो इस प्रकार - औदारिक और वैक्रिय । स्वदारा संतोष का नियम करनेवाले श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए ।- अपरिगृहिता गमन, दूसरे के द्वारा परिगृहित के साथ गमन, अनंगक्रीड़ा, पराया विवाह करना और कामभोग के लिए तीव्र अभिलाष करना । सूत्र - ६८
श्रमणोपासक अपरिमित परिग्रह का त्याग करे यानि परिग्रह का परिमाण करे । वो परिग्रह दो तरीके से हैं। सचित्त और अचित्त । ईच्छा (परिग्रह) का परिमाण करनेवाले श्रावक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए । १. घण और धन के प्रमाण में, २. क्षेत्रवस्तु के प्रमाण में, ३. सोने-चाँदी के प्रमाण में, ४.द्वीपद-चतुष्पद के प्रमाण में और ५. कुप्य-धातु आदि के प्रमाण में अतिक्रम हो वो।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (आवस्सय) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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