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आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र ४, 'दशाश्रुतस्कन्ध'
[३७] दशाश्रुतस्कन्ध छेदसूत्र-४- हिन्दी अनुवाद
दशा- १- असमाधिस्थान
संयम के सामान्य दोष या अतिचार को यहाँ असमाधि स्थान बताया है। जैसे शरीर की समाधि - शान्ति पूर्ण अवस्था में मामूली बीमारी या दर्द बाधक बनते हैं । काँटा लगा हो या दाँत, कान, गले में कोई दर्द हो या शर्दी जैसा मामूली व्याधि हो तो भी शरीर की समाधि स्वस्थता नहीं रहती वैसे संयम में छोटे या अल्प दोष से भी स्वस्थता नहीं रहती । इसलिए इन स्थान को असमाधि स्थान बताए हैं। जो इस पहली दशा में बयान किए हैं । सूत्र - १
अरिहंत को मेरे नमस्कार हो, सिद्ध को मेरे नमस्कार हो, आचार्य को मेरे नमस्कार हो, उपाध्याय को मेरे नमस्कार हो, लोक में रहे सभी साधु को मेरे नमस्कार हो, इन पाँचों को किए नमस्कार सर्व पाप के नाशक हैं, सर्व मंगल में उत्कृष्ट मंगल हैं। हे आयुष्मन् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सुना है।
सूत्र - २
यह (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने बीस असमाधि स्थान बताए हैं। स्थविर भगवंत ने कौनसे बीस असमाधि स्थान बताए हैं ?
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१. अति शीघ्र चलनेवाले होना।
२. अप्रमार्जिताचारी होना रजोहरणादि से प्रमार्जन किया न हो ऐसे स्थान में चलना (बैठना- सोना
उद्देशक / सूत्र
आदि) ।
३. दुष्प्रमार्जिताचारी होना उपयोग रहितपन से या इधर-उधर देखते-देखते प्रमार्जना करना ।
४. अधिक शय्या - आसन रखना, शरीर प्रमाण लम्बाईवाली शय्या, आतापना- स्वाध्याय आदि जिस पर किया जाए वो आसन । वो प्रमाण से ज्यादा रखना ।
५. दीक्षापर्याय में बड़ों के सामने बोलना ।
६. स्थविर और उपलक्षण से मुनि मात्र के घात के लिए सोचना ।
७. पृथ्विकाय आदि जीव का घात करे ।
८. आक्रोश करना, जलते रहना ।
९. क्रोध करना, स्व-पर संताप करना ।
१०. पीठ पीछे निंदा करनेवाले होना ।
११. बार-बार निश्चयकारी बोली बोलना ।
१२. अनुत्पन्न ऐसे नए झगड़े उत्पन्न करना ।
१३. क्षमापना से उपशान्त किए गए पुराने कलह झगड़े फिर से उत्पन्न करना ।
१४. अकाल-स्वाध्याय के लिए वर्जित काल, उसमें स्वाध्याय करना ।
१५. सचित्त रजयुक्त हाथ-पाँववाले आदमी से भिक्षादि ग्रहण करना ।
१६. अनावश्यक जोर-जोर से बोलना, आवाझ करना ।
१७. संघ या गण में भेद उत्पन्न करनेवाले वचन बोलना ।
१८. कलह यानि वाग्युद्ध या झगड़े करना ।
१९. सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ न कुछ खाते रहना ।
२०. निर्दोष भिक्षा आदि की खोज करने में सावधान न रहना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "( दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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