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________________ आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४,'दशाश्रुतस्कन्ध' उद्देशक/सूत्र वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है । (यावत् पूर्वोक्त चार प्रतिमा का सम्यक् परिपालन करनेवाला होता है ।) वो नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है । वो सामायिक देशावकासिक व्रत का यथासूत्र, यथाकल्प, यथातथ्य, यथामार्ग शरीर से सम्यक् प्रकार से स्पर्श करनेवाला, पालन, शोधन, कीर्तन करते हुए जिनाज्ञा मुताबिक अनुपालक होता है । वो चौदश आदि पर्व तिथि पर पौषध का अनुपालक होता है एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् अनुपालन करता है । वो स्नान नहीं करता, रात्रि भोजन नहीं करता, वो मुकुलीकृत यानि धोति की पाटली नहीं बाँधता, वो इस प्रकार के आचरण पूर्वक विचरते हुए जघन्य से एक, दो या तीन दिन और उत्कृष्ट से पाँच महिने तक इस प्रतिमा का पालन करता है। वो पाँचवी (दिन में ब्रह्मचर्य नाम की उपासक प्रतिमा ।) सूत्र-४२ अब छठ्ठी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला यावत् एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् अनुपालन कर्ता होता है । वो स्नान न करनेवाला, दिन में ही खानेवाला, धोति की पाटली न बांधनेवाला, दिन और रात में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है । लेकिन वो प्रतिज्ञापूर्वक सचित्त आहार का परित्यागी नहीं होता। इस प्रकार के आचरण से विचरते हुए वो जघन्य से एक, दो या तीन दिन और उत्कृष्ट से छ मास तक सूत्रोक्त मार्ग के मुताबिक इस प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन करते हैं-यह छठ्ठी (दिन-रात ब्रह्मचर्य) उपासक प्रतिमा। सूत्र-४३ अब सातवीं उपासक प्रतिमा कहते हैं वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है । यावत् दिन-रात ब्रह्मचारी और सचित्त आहार परित्यागी होता है। लेकिन गृह आरम्भ के परित्यागी नहीं होता । इस प्रकार के आचरण से विचरते हुए वह जघन्य से एक, दो या तीन दिन से उत्कृष्ट सात महिने तक सूत्रोक्त मार्ग अनुसार इस प्रतिमा का पालन करते हैं । यह (सचित्त परित्याग नाम की) सातवीं उपासक प्रतिमा । सूत्र-४४ अब आठवीं उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है । यावत् दिन-रात ब्रह्मचर्य का पालन करता है। सचित्त आहार का और घर के सर्व आरम्भ कार्य का परित्यागी होता है। लेकिन अन्य सभी आरम्भ के परित्यागी नहीं होते । इस प्रकार के आचरणपूर्वक विचरते वह जघन्य से एक, दो, तीन यावत् आठ महिने तक सूत्रोक्त मार्ग अनुसार इस प्रतिमा का पालन करते हैं । यह (आरम्भ परित्याग नाम की) आठवी उपासक प्रतिमा । सूत्र - ४५ अब नौवीं उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाले होते हैं । यावत् दिन-रात पूर्ण ब्रह्मचारी, सचित्ताहार और आरम्भ के परित्यागी होते हैं । दूसरे के द्वारा आरम्भ करवाने के परित्यागी होते हैं । लेकिन उद्दिष्ट भक्त यानि अपने निमित्त से बनाए हुए भोजन करने का परित्यागी नहीं होता । इस प्रकार आचरणपूर्वक विचरते वह जघन्य से एक, दो या तीन दिन से उत्कृष्ट नौ महिने तक सूत्रोक्त मार्ग अनुसार प्रतिमा पालता है, यह नौवीं (प्रेषपरित्याग नामक) उपासक प्रतिमा । सूत्र-४६ अब दशवीं उपासक प्रतिमा कहते हैं वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है । (इसके पहले बताए गए नौ उपासक प्रतिमा का धारक होता है ।) उद्दिष्ट भक्त-उसके निमित्त से बनाए भोजन-का परित्यागी होता है वो सिर पर मुंडन करवाता है लेकिन चोटी रखता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 17
SR No.034705
Book TitleAgam 37 Dashashrutskandha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 37, & agam_dashashrutaskandh
File Size2 MB
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