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आगम सूत्र ३५, छेदसूत्र-२, 'बृहत्कल्प
उद्देशक/सूत्र
[३५] बृहत्कल्प छेदसूत्र-२- हिन्दी अनुवाद
उद्देशक-१ इस आगम सूत्र में कुल छ उद्देशक और २१५ सूत्र हैं । पद्य कोई नहीं । इस सूत्र में अनेक बार निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थी शब्द इस्तमाल किया गया है । जिसका लोकप्रसिद्ध अर्थ साधु-साध्वी होता है। हमने पहले से अन्तिम सूत्र पर्यन्त प्रत्येक स्थान में साधु-साध्वी अर्थ स्वीकार करके अनुवाद किया है। सूत्र-१
साधु-साध्वी को आम और केले कटे हुए न हो तो लेना नहीं कल्पता । (यहाँ अभिन्न शब्द का अर्थ शस्त्र से अपरिणत ऐसा भी होता है । यानि किसी भी शस्त्र द्वारा वो अचित्त किया हुआ होना चाहिए । केवल छेदन-भेदन से आम अचित्त न भी हुआ हो। ताल प्रलम्ब शब्द से केला ऐसा अर्थ चूर्णी-वृत्ति के सहारे से किया गया है, लेकिन वहाँ अभिन्न शब्द का अर्थ अपक्व ऐसा होता है, उपलक्षण से तो सारे फल का यहाँ ग्रहण करना ऐसा समझना) सूत्र - २
साधु-साध्वी को शस्त्रपरिणत या भेदन कीया गया आम या केले लेना कल्पे । सूत्र-३-५
साधु को अखंड़ या टुकड़े किए गए केला लेने की कल्पे लेकिन, साध्वी को न कल्पे । साध्वी को टुकड़े किए गए केला ही ग्रहण करना कल्पता है । (अखंड केले का आकार लम्बा देखकर साध्वी के मन में विकार भाव पैदा हो सकता है । और उस केले से वो अनंगक्रीड़ा भी कर सकती है। वृत्तिकार बताते हैं कि केले के छोटे-छोटे टुकड़े होने चाहिए । बड़े टुकड़े भी नहीं चलते ।) सूत्र- ६-९
गाँव, नगर, खेड़ा, कसबा, पाटण, खान, द्रोणमुख, निगम, आश्रम, संनिवेश यानि पड़ाव, पर्वतीय स्थान, ग्वाले की पल्ली, परा, पुटभेदन और राजधानी इतने स्थान में चारों ओर वाड किला आदि हो, बाहर घर न हो तो भी साधुओं को शर्दी-गर्मी में एक महिना रहना कल्पे, बाहर आबादी हो तो एक महिना गाँव में और एक महिना गाँव के बाहर ऐसे दो मास भी रहना कल्पे । गाँव आदि के बाहर बसति न हो तो शर्दी गर्मी में दो महिने रहना कल्पे वसति हो तो दो महिना गाँव में और दो महिने गाँव के बाहर ऐसे चार महिने भी रहना पड़े तो कल्पे । केवल इतना कि गाँव आदि की भीतर रहे तब गाँव की भिक्षा और बाहर रहे तब बाहर की भिक्षा लेनी कल्पे। सूत्र-१०-११
गाँव यावत् राजधानी में जिस स्थान पर एकवाड, एकद्वार, एकप्रवेश, निर्गमन स्थान हो वहाँ समकाल साधु-साध्वी को साथ रहना न कल्पे लेकिन अनेकवाड, अनेकद्वार, अनेक प्रवेश निर्गमन स्थान हो तो कल्पता है।
वगडा यानि वाड, कोट, प्राकार ऐसा अर्थ होता है । गाँव या घर की सुरक्षा के लिए उसके आसपास दिवाल, वाड आदि बनाए हो वो, द्वार यानि प्रवेश या नीकालने का रास्ता, प्रवेश निर्गमन यानि आने-जाने की क्रिया
स्थंडिल भूमि, भिक्षाचर्या या स्वाध्याय आदि के लिए आते-जाते बार-बार साधु-साध्वी के मिलन से एकदूसरे से संसर्ग बढ़े रागभाव की वृद्धि हो । संयम की हानि हो, लोगों में संशय हो यह सम्भव है। सूत्र-१२-१३
हाट या बाजार, गली या महोल्ले का अग्र हिस्सा, तीन गली या रास्ते इकट्ठे हो रहे हो वैसा त्रिक स्थान, चार मार्ग के समागम वाला चौराहा, छ रास्ते का मिलनेवाला चत्वर स्थान, आबादी के एक या दोनों ओर बाजार हो
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(बृहत्कल्प)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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