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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उद्देशक-२ निसीह'' सूत्र के इस दूसरे उद्देशक में ५९ से ११७ उस तरह से कुल ५९ सूत्र हैं । इस प्रत्येक सूत्र में बताए दोष का त्रिविध से सेवन करनेवाले 'उग्घातियम्' नाम का प्रायश्चित्त आता है ऐसा उद्देशक के अन्त में बताया है। दूसरे उद्देशक की शुरूआत में दे गइ भाष्य गाथा अनुसार उसे 'लहुमासं' प्रायश्चित्त से पहचाना जाता है। सूत्र-५९
जो साधु-साध्वी लकड़ी के दंड़वाला पादप्रौछनक करे । अर्थात् निषद्यादि दो वस्त्र रहित ऐसे केवल लकड़े की दांडीवाला रजोहरण करे । वो खुद न करे, न करवाए, करनेवाले की अनुमोदना न करे । सूत्र-६०-६६
जो साधु-साध्वी इस तरह निषद्यादि दो वस्त्र रहित का केवल लकड़ी की दंडीवाला पादप्रोछनक अर्थात् रजोहरण ग्रहण करे, धारण करे अर्थात् रखे, वितरण करे यानि कि दूसरों को दे दे, परिभोग करे यानि कि उससे प्रमार्जन आदि कार्य करे, किसी विशेष कारण या हालात की कारण से ऐसा रजोहरण रखना पड़े तो भी देढ़ मास से ज्यादा वक्त रखे, ताप देने के लिए खोलकर अलग रखे । इन सर्व दोष का खुद सेवन करे, अन्य से सेवन करवाए या सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-६७
जो साधु-साध्वी अचित्त वस्तु साथ में या पास रखी चीज खुद सूंघे, दूसरों को सूंघाए या सूंघनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-६८
जो साधु-साध्वी पगवटी यानि कि गमनागमन का मार्ग-कीचड़ आदि पार करने के लिए लकड़ी आदि से संक्रम, खाई आदि पार करने के लिए रस्सी का या अन्य वैसा आलम्बन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ६९-७१
जो साधु-साध्वी पानी नीकालने की नीक या गटर, आहार, पात्रादि की स्थापना के लिए सीक्का और उसका ढक्कन, सूत का या डोर का पर्दा खुद करे, दूसरों के पास करवाए या करनेवाले को अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-७२-७५
जो साधु-साध्वी सूई, कातर, नाखून छेदिका, कान खुतरणी, आदि की सुधारणा, धार नीकालना आदि खुद करे, दूसरों से करवाए या अनुमोदना करे । सूत्र - ७६-७७
जो साधु-साध्वी थोड़ा लेकिन कठोर या असत्य वचन बोले, बुलवाए या बोलनेवाले की अनुमोदना करे (भाषा समिति का भंग होने से) तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७८
जो साधु-साध्वी थोड़ा लेकिन अदत्त अर्थात् किसी चीज के स्वामी से नहीं दिया हआ ग्रहण करे, करवाए या उसे लेनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-७९
जो साधु-साध्वी थोड़ा-अल्प बूंद जिनता अचित्त ऐसा ठंडा या गर्म पानी लेकर हाथ-पाँव-कान-आँख-दाँतनाखून या मुँह एक बार या बार-बार धोए, धुलाए या धोनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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