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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उद्देशक-१६ 'निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में १०५९ से ११०८ यानि कि कुल-५० सूत्र हैं । इसमें बताए अनुसार किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को चाउम्मासियं परिहारट्राणं उग्घातियं नाम का प्रायश्चित्त आता है। सूत्र-१०५९-१०६१
जो साधु-साध्वी सागारिक यानि गृहस्थ जहाँ रहते हो वैसी वसति, सचित्त जल या अग्निवाली वसति में जाए या प्रवेश करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१०६२-१०६९
जो साधु-साध्वी सचित्त ऐसी ईख खाए, खिलाए या खिलानेवाले की अनुमोदना करे (इस सूत्र से आरम्भ करके सूत्र १०६९ तक के आठ सूत्र, उद्देशक-१५ के सूत्र ९०९ से ९१६ के आठ सूत्र अनुसार समझना । फर्क केवल इतना कि वहाँ आम के बारे में कहा है, उसकी जगह यहाँ ईख' शब्द का प्रयोग करना ।) सूत्र-१०७०
जो साधु-साध्वी अरण्य या जंगल में रहनेवाले या अटवी में यात्रा में जानेवाले के वहाँ से अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप आहार ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १०७१-१०७२
जो साध-साध्वी विशद ज्ञान, दर्शन, चारित्र आराधक को ज्ञान, दर्शन, चारित्र आराधक न कहे और ज्ञान, दर्शन, चारित्र रहित या अल्प आराधक को विशद्ध ज्ञान आदि धारक कहे, कहलाए या कहनेवाले करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१०७३
जो साधु-साध्वी विशुद्ध या विशेष ज्ञान, दर्शन, चारित्र आराधक गण में से अल्प या अविशुद्ध ज्ञान, दर्शन, चारित्र गण में जाए, भेजे या जानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- १०७४-१०८२
जो साधु-साध्वी व्युद्ग्राहीत या कदाग्रह वाले साधु (साध्वी) को अशन, पान, खादिम, स्वादिम समान आहार, वस्त्र, पात्र, कंबल या रजोहरण, वसति यानि कि उपाश्रय, सूत्र अर्थ आदि वांचना दे या, उसके पास से ग्रहण करे और उसकी वसति में प्रवेश करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- १०८३-१०८४
जहाँ सुख-शान्ति से विचरण कर सके ऐसे क्षेत्र और आहार-उपधि-वसति आदि सुलभ हो ऐसे क्षेत्र प्राप्त होने के बाद भी विहार के आशय से या उम्मीद से जहाँ कोई दिन-रात को पहुँच पाए वैसी अटवी या विकट मार्ग पसन्द करने के लिए जो साधु-साध्वी सोचे या विकट ऐसे चोर आने-जाने के, अनार्य-म्लेच्छ या अन्त्य जन से परिसेवन किए जानेवाले मार्ग विहार के लिए सोचे या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।। सूत्र - १०८५-१०९०
जो साधु-साध्वी जुगुप्सित या निन्दित कुल में से अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप आहार-वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण, वसति ग्रहण करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१०९१-१०९३
जो साधु-साध्वी अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप आहार भूमि पर, संथारा में, खींटी या सिक्के में स्थापन करे, रख दे, रखवाए या रखनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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