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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उसके बारे में पूछे बिना, उसकी गवेषणा किए बिना उन दोनों तरह के वस्त्र ग्रहण करे-करवाए, अनुमोदना करे । सूत्र- १००३-१०५६
जो साधु-साध्वी विभूषा के निमित्त से यानि शोभा-खूबसूरती आदि बढ़ाने की बुद्धि से अपने पाँव का एक या कईं बार प्रमार्जन करे-करवाए, अनुमोदना करे । (इस सूत्र से आरम्भ करके) एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए अपने मस्तक का आच्छादन करे-करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।।
(उद्देशक-३ के सूत्र-१३३ से १८५ में यह सभी विवरण किया है । उसी के अनुसार यहाँ सूत्र १००४ से १०५६ के लिए समझ लेना । फर्क केवल इतना की पाँव धोना आदि की क्रिया यहाँ इस उद्देशक में शोभाखूबसूरती बढ़ाने के आशय से हुई हो तब प्रायश्चित्त आता है।) सूत्र - १०५७-१०५८
जो साधु-साध्वी विभूषा निमित्त से यानि शोभा या खूबसूरती बढ़ाने के आशय से वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण या अन्य किसी उपकरण धारण करे, करवाए, अनुमोदना करे या धोए, धुलवाए, धोनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
यह उद्देशक-१५ में बताए अनुसार किसी भी दोष का खुद सेवन करे, दूसरों के पास सेवन करवाए या दोष सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो उसे चातुर्मासिक परिहारस्थान उद्घातिक कि जिसका दूसरा नाम 'लघु चौमासी' है वो प्रायश्चित्त आता है।
उद्देशक-१५-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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