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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र सूत्र-८९९
जो साधु-साध्वी पात्र पर कोरणी करे-करवाए या कोतर काम किया गया पात्र कोई सामने से दे तो ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ९००-९०१
जो साधु-साध्वी जानेमाने या अनजान श्रावक या इस श्रावक के पास गाँव में या गाँव के रास्ते में, सभा में से खड़ा करके जोर-जोर से पात्र की याचना करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ९०२-९०३
जो साधु-साध्वी पात्र का लाभ होगा वैसी ईच्छा से ऋतुबद्ध यानि शर्दी, गर्मी या मासकल्प या वर्षावास मतलब चातुर्मास निवास करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-९०४
इस प्रकार उद्देशक-१४ में कहने के अनुसार किसी भी दोष का खुद सेवन करे, दूसरों के पास सेवन करवाए या दोष सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहारस्थान उद्घातिक नाम का प्रायश्चित्त आता है, जिसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त कहते हैं।
उद्देशक-१४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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