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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र सूत्र -८४८-८६२
जो साधु-साध्वी नीचे बताने के अनुसार भोजन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
धात्रि, दूति, निमित्त, आजीविका, वनीपक, चिकित्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ, विद्या, मंत्र, योग, चूर्ण या अंतर्धान इसमें से किसी भी पिंड़ यानि भोजन खाए, खिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे।।
धात्री-गृहस्थ के बच्चे के साथ खेलकर गोचरी करे । दूती, गृहस्थ के संदेशा की आप-ले करे, निमित्तशुभाशुभ कथन करे, आजीविक, जीवन निर्वाह के लिए जाति-कुल तारीख करे, वनीपक दीनतापूर्वक याचना करे, चिकित्सा-रोग आदि के लिए औषध दे, विद्या, स्त्री देवता अधिष्ठित साधना, मंत्र, पुरुष देवता अधिष्ठित साधना, योग-वशीकरण आदि प्रयोग, चूर्ण, कई चीज मिश्रित चूर्ण प्रयोग, इसमें से किसी दोष का सेवन करके आहार लाए।
इस प्रकार उद्देशक-१२ में बताए अनुसार किसी भी कृत्य खुद करे, अन्य के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो 'चातुर्मासिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त' मतलब लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।
उद्देशक-१३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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