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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उद्देशक-१२ "निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में ७४७ से ७८८ यानि कि कुल ४२ सूत्र हैं । उसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं' नाम का प्रायश्चित्त आता है जिसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त कहते हैं। सूत्र-७४७-७४८
जो साधु-साध्वी करुणा बुद्धि से किसी भी त्रस जाति के जानवर को तृण, मुंज, काष्ठ, चर्म-नेतर, सूत या धागे के बँधन से बाँधे, बँधाए या अनुमोदन करे, बँधनमुक्त करे, करवाए या अनुमोदन करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७४९
जो साधु-साध्वी बार-बार प्रत्याख्यान-नियम भंग करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-७५०
जो साधु-साध्वी प्रत्येककाय-सचित्त वनस्पति युक्त आहार करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७५१
जो साधु-साध्वी रोमयुक्त चमड़ा धारण करे अर्थात् पास रखे या उस पर बैठे, बिठाए, बैठनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७५२
जो साधु-साध्वी घास, तृण, शण, नेतर या दूसरों के वस्त्र से आच्छादित ऐसे पीठ पर बैठे, बिठाए, बैठनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७५३
जो साधु-साध्वी का (साध्वी साधुका) ओढ़ने का कपड़ा अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास सीलवाए, दूसरों को सीने के लिए कहे, सीनेवाले की अनुमोदना करे । सूत्र - ७५४
जो साधु-साध्वी, पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय या वनस्पति काय की अल्पमात्र भी विराधना करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-७५५
जो साधु-साध्वी सचित्त पेड़ पर चड़े, चड़ाए या चड़नेवाले की अनुमोदना करे । सूत्र-७५६-७५९
जो साधु-साध्वी गृहस्थ के बरतन में भोजन करे, उसके वस्त्र पहने, आसन आदि पर बैठे, चिकित्सा करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७६०-७६१
जो साधु-साध्वी सचित्त जल से धोने समान पूर्वकर्म करे या गृहस्थ या अन्यतीर्थिक से हमेशा गीले रहनेवाले या गीले धारण, कड़छी, मापी आदि से दिए गए अशन, पान, खादिम, स्वादिम ग्रहण करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७६२-७७४
जो साधु-साध्वी चक्षुदर्शन अर्थात् देखने की अभिलाषा से यहाँ कही गई दर्शनीय जगह देखने का सोचे या संकल्प करे, करवाए या अनुमोदना करे ।
लकड़े का कोतरकाम, तसवीरे, वस्त्रकर्म, लेपनकर्म, दाँत की वस्तु, मणि की चीज, पत्थरकाम, गूंथी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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