________________
आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उद्देशक-६ निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में ३९३ से ४६९ यानि की कुल ७७ सूत्र हैं । जिसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'चाऊम्मासियं परिहारठाणं अनुग्घातियं' नाम का प्रायश्चित्त आता है । जिसे 'गुरु चौमासी' प्रायश्चित्त कहते हैं। सूत्र-३९३-४०२
जो साधु मैथुन सेवन की ईच्छा से स्त्री को (साध्वी हो तो पुरुष को) विनती करे, हस्त कर्म करे मतलब हाथ से होनेवाली क्रियाए करे, जननेन्द्रिय का संचालन करे यावत् शुक्र (साध्वी हो तो रज) बाहर नीकाले । (उद्देशक-१ में सूत्र २ से १० तक वर्णन की हुई सभी क्रियाए यहाँ समझ लेना ।) यह काम खुद करे, दूसरों से करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-४०३-४०५
जो साधु मैथुन सेवन की ईच्छा से स्त्री को (साध्वी-पुरुष को) वस्त्र रहित करे, वस्त्र रहित होने के लिए कहे-स्त्री (पुरुष) के साथ क्लेश झगड़े करे, क्रोधावेश से बोले, लेख यानि खत लिखे । यह काम करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ४०६-४१०
जो साधु मैथुन सेवन की ईच्छा से स्त्री को (साध्वी-पुरुष को) जननेन्द्रिय, गुह्य हिस्सा या छिद्र को औषधि विशेष से लेप करे, अचित्त ऐसे ठंड़े या गर्म पानी से एक बार या बार-बार प्रक्षालन करे, प्रक्षालन बाद एक या कईं बार किसी आलेपन विशेष से विलेपन करे, विलेपन के बाद तेल, घी, चरबी या मक्खन से अभ्यंगन या म्रक्षण करे, उसके बाद किसी गन्धकार द्रव्य से उसको धूप करे मतलब गन्धदार बनाए यह काम खुद करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- ४११-४१५
जो साधु-साध्वी मैथुन की ईच्छा से अखंड वस्त्र धारण करे यानि अपने पास रखे, अक्षत् (जो फटे हुए नहीं हैं), धोए हुए (उज्ज्वल) या मलिन, रंगीन, रंगबेरंगी सुन्दर वस्त्र धारण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त सूत्र - ४१६-४६८
जो साधु-साध्वी मैथुन सेवन की ईच्छा से एक बार या कईं बार अपने पाँव प्रमार्जन करे, करवाए या अनुमोदना करे (यह कार्य आरम्भ करके) एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए अपने मस्तक को आच्छादन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । ।
(यहाँ ४१६ से ४६८ में कुल ५३ सूत्र हैं । उसका विवरण उद्देशक-३ के सूत्र १३३ से १८५ अनुसार जान लेना । विशेष से केवल इतना की पाँव प्रमार्जन से मस्तक आच्छादन' तक की सर्व क्रिया मैथुन सेवन की ईच्छा से की गई हो तब 'गुरु चौमासी' प्रायश्चित्त आता है ऐसा जानना ।) सूत्र-४६९
जो साधु-साध्वी मैथुन सेवन की ईच्छा से दूध, दही, मक्खन, घी, गुड़, मोरस, शक्कर या मिश्री या ऐसा अन्य किसी पौष्टिक आहार करे, करवाए या अनुमोदना करे ।
इस प्रकार उद्देशक-६ में बताए अनुसार किसी भी एक या ज्यादा दोष का सेवन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो वो साधु, साध्वी को चातुर्मासिक परिहारस्थान अनुद्घातिक प्रायश्चित्त आता है, जिसे 'गुरु चौमासी' प्रायश्चित्त नाम से भी पहचाना जाता है।
उद्देशक-६-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 21