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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उद्देशक-४ 'निसीह'' सूत्र के इस चौथे उद्देशक में १९७ से ३१३ उस तरह से कुल मिलाके ११७ सूत्र हैं । जिसमें बताए अनुसार किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को मासियं परिहारठाणं उग्घातियं' नाम का प्रायश्चित्त आता है । जिसे लघुमासिक प्रायश्चित्त भी कहते हैं। सूत्र- १९७-१९९
जो साधु-साध्वी राजा को वश करे, प्रशंसा करे, आकर्षित करे-करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - २००-२१४
जो साधु-साध्वी राजा के रक्षक को, नगर रक्षक को, निगम यानि कि व्यापार के स्थान के रक्षक को, देश रक्षक को, सर्व रक्षक को (इस पाँच में से किसी को भी) वश करे, प्रशंसा करे, आकर्षित करे, वैसा करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे । सूत्र-२१५
जो साधु-साध्वी अखंडित या सचित्त औषधि (अर्थात् सचित्त धान्य या सचित्त बीज) खुद खाए, दूसरों को खीलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - २१६
जो साधु-साध्वी आचार्य-उपाध्याय (किसी भी रत्नाधिक) को मालूम किए बिना (आज्ञा लिए सिवा) दहीं, दूध आदि विगइ खुद खाए, खिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - २१७
जो साधु-साध्वी स्थापना कुल को (जहाँ साधु निमित्त से अन्न-पान आदि की स्थापना की जाती है उस कुल को) जाने-पूछे-पूर्वे गवेषणा किए बिना आहार ग्रहण करने की इच्छा से उस कुल में प्रवेश करे या करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-२१८
जो साधु-साध्वी के उपाश्रय में अविधि से प्रवेश करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - २१९
जो साधु-साध्वी के आने के मार्ग में दंड़ी, लकड़ी, रजोहरण, मुहपत्ति या अन्य किसी भी उपकरण को रखे, रखवाए या रखनेवाले की अनुमोदना करे । सूत्र - २२०-२२१
जो साधु-साध्वी नए या अविद्यमान क्लेश पैदा करे, खमाए हुए या उपशान्त हुए पुराने क्लेश को पुनः उद्दीकरण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - २२२
जो साधु-साध्वी मुँह फाड़कर यानि की खुशखुशहाल हँसे, हँसाए या हँसनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - २२३-२३२
जो साधु (या साध्वी) पासत्था (ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप की समीप रहे फिर भी उसकी आराधना न करे वो), ओसन्ना (अवसन्न या शिथिल), कुशील, नीत्यक (नीच या अधम), संसक्त (संबद्ध) इन पाँच में से किसी को
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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