________________
आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र सूत्र - १८४
जो साधु-साध्वी अपने शरीर का पसीना, मैल, पसीना और धूल से ढ़ग बने कचरे का थर, या लहू के भींगड़े आदि समान किसी भी कचरे को नीकाले या विशुद्ध करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १८५
जो साधु-साध्वी एक गाँव से दूसरे गाँव विहार करते हुए अपने सिर को ढंके, आवरण से आच्छादित करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १८६
जो साधु-साध्वी शण, ऊनी, सूत या वैसी चीज में से वशीकरण का धागा बनाए, बनवाए या बनानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १८७-१९५
जो साधु-साध्वी घर के आँगन के पास, दरवाजे पर, अंतर द्वार पर, अग्र हिस्से में, आँगन में या मूत्र-विष्टा निवारण स्थान में, मृतकगृह में, मुर्दा जलाने के बाद ईकट्ठी हुई भस्म की जगह, स्मशान के पास मृतक को थोड़ी देर रखी जाए उसी जगह, मुर्दा जलाने की जगह पर की गई डेरी की जगह, मृतक दहन स्थान पर या मृतक की हड्डियाँ जहाँ डाली जाती हो वहाँ, अंगार, क्षार, गात्र (रोगाक्रान्त पशु के - वो अवयव) तुस (नीभाडो) या भूसु सुलगाने की जगह पर, कीचड़ या नील-फूल हो उस जगह, नवनिर्मित ऐसा तबेला, मिट्टी की खाण, या हल चलाई हुई भूमि में, उदुम्बर, न्यग्रोध या पीपल के पेड़ के फल को गिरने की जगह पर, ईख, कसूम्बा या कपास के जंगल में, डाग (वनस्पति का नाम है), मूली, धनिया, जीरा, दमनक (वनस्पति) या मरुक (वनस्पति) रखने की जगह, अशोक, सप्तवर्ण, चंपक या आम के वन में, यह या ऐसे किसी भी तरह के पानवाले, पुष्प-फल-छाँववाले पेड़ के समूह हो उस जगह में (उक्त सभी जगह में से किसी भी जगह) मल, मूत्र परठवे, परठवाए या परठवनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १९६
जो साधु-साध्वी दिन में, रात में या विकाल-संध्या के वक्त मल-मूत्र स्थापन करके सूर्योदय से पहले परठवे, परठवाए या परठवनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
इस उद्देशक में कहे अनुसार के किसी भी दोष त्रिविधे सेवन करे तो उसे मासिक परिहारस्थान उद्घातिक प्रायश्चित्त आए जिसे लघुमासिक प्रायश्चित्त भी कहते हैं।
उद्देशक-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 15