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आगम सूत्र ३३, पयन्नासूत्र-१०, 'वीरस्तव' सूत्र- २६
अन्य कुटिलता, त्रिशुल, जटा, गुरूर, नफरत, मन में असूया गुणाकारी की लघुता ऐसे कईं दोष हो । सूत्र - २७
ऐसे बहुरूप धारी देव तुम्हारे पास बसते हैं तो भी उसे विकार रहित किए, इसलिए तुम वीतराग हो । सूत्र - २८
सर्वद्रव्य के प्रति पर्याय की अनन्त परिणति स्वरूप को एक साथ और त्रिकाल संस्थित रूप से जानते हो इसलिए तुम केवली हो। सूत्र - २९
___ उस विषय से तुम्हारी अप्रतिहत, अनवरत, अविकल शक्ति फैली हुई है । रागद्वेष रहित होकर चीजों को जाना है । इसलिए केवली कहलाते हो । सूत्र-३०
जो संज्ञी पंचेन्द्रिय को त्रिभुवन शब्द द्वारा अर्थ ग्राह्य होने से उनको सद्धर्म में जो जोड़ते हो अर्थात् अपनी वाणी से धर्म में जुड़ते हैं इसलिए तुम त्रिभुवन गुरु हो । सूत्र-३१
प्रत्येक सूक्ष्म जीव को बड़े दुःख से बचानेवाले और सबके हितकारी होने से तुम सम्पूर्ण हो । सूत्र-३२
बल, वीर्य, सत्त्व, सौभाग्य, रूप, विज्ञान, ज्ञान में उत्कृष्ट हो । उत्तम पंकज में निवास करते हो (विचरते हो) इसलिए तुम त्रिभुवनमें श्रेष्ठ हो । सूत्र-३३
प्रतिपूर्ण रूप, धन, कान्ति, धर्म, उद्यम, यशवाले हो, भयसंज्ञा भी तुमसे शिथिल हुई है इसलिए हे नाथ ! तुम भयान्त हो। सूत्र - ३४
यह लोक परलोक आदि सात तरह के भय आपके विनष्ट हुए हैं । इसलिए हे जिनेश ! तुम भयान्त हो । सूत्र-३५
चतुर्विध संघ या प्रथम गणधर समान ऐसे तीर्थ को करने के आचारवाले इसलिए तुम तीर्थंकर हो । सूत्र-३६
इस प्रकार गुण समूह से समर्थ ! तुम्हें शक्र भी अभिनन्दन करे तो इसमें क्या ताज्जुब? इसलिए शक्र से अभिवंदित हे जिनेश्वर ! तुम्हें नमस्कार हो । सूत्र - ३७
मनःपर्यव, अवधि, उपशान्त और क्षय मोह इन तीनों को जिन कहते हैं । उसमें तुम परम ऐश्वर्यवाले इन्द्र समान हो इसलिए तुम्हें जिनेन्द्र कहा है। सूत्र-३८
___ सिद्धार्थनरेश्वर के घरमें धन, कंचन, देश-कोश आदि तुमने वृद्धि की इसलिए हे जिनेश्वर तुम वर्द्धमान हो । सूत्र-३९
कमल का निवास है, हस्त तल में शंख चक्र, सारंग (की निशानी) है । वर्षीदान को दिया है । इसलिए हे जिनवर तुम विष्णु कहलाते हो।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(वीरस्तव)- आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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