________________
आगम सूत्र ३३, पयन्नासूत्र-१०, 'वीरस्तव'
[३३] वीरस्तव पयन्नासूत्र-१०- हिन्दी अनुवाद
सूत्र-१
जगजीव बन्धु, भविजन रूपी कुमुद को विकसानेवाला, पर्वत समान धीर ऐसे वीर जिनेश्वर को नमस्कार करके उन्हें प्रगट नाम के द्वारा मैं स्तवन करूँगा। सूत्र- २-३
अरुह, अरिहंत, अरहंत, देव, जिन, वीर, परम करुणालु, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, समर्थ, त्रिलोक के नाथ वीतराग केवली, त्रिभुवनगुरु, सर्व त्रिभुवन वरिष्ठ भगवन् तीर्थंकर, शक्र द्वारा नमस्व सूत्र-४
वर्धमान, हरि, हर, कमलासन प्रमुख नाम से जड़मति ऐसा मैं सूत्रानुसार यथार्थ गुण द्वारा स्तवन करूँगा। सूत्र-५
भवबीज समान अंकुर से हुए कर्म को ध्यान समान अग्नि द्वारा जलाकर फिर से भव समान गहन वन में न ऊगने देनेवाले हो इसलिए हे नाथ ! तुम 'अरूह' हो । सूत्र-६
तिर्यंच के घोर उपसर्ग, परीषह, कषाय पैदा करनेवाले शत्रु को हे नाथ ! तुमने पूरी तरह से वध कर दिया है इसलिए तुम अरिहंत हो। सूत्र -७
उत्तम ऐसे वंदन, स्तवन, नमस्कार, पूजा, सत्कार और सिद्धि गमन की योग्यता वाले हो जिस कारण से तुम अरहंत' हो। सूत्र-८
देव, मानव, असुर प्रमुख की उत्तम पूजा को तुम योग्य हो, धीरज और मान से छोड़े हुए हो इसलिए हे देव तुम अरहंत हो। सूत्र - ९
रथ-गाड़ी निदर्शित अन्य संग्रह या पर्वत की गुफा आदि तुमसे कुछ दूर नहीं है इसलिए हे जिनेश्वर तुम अरहंत हो। सूत्र-१०
जिसने उत्तम ज्ञान द्वारा संसार मार्ग का अंत करके, मरण को दूर करके निज स्वरूप समान संपत्ति पाई है इसलिए तुम अरहंत हो। सूत्र - ११
मनोहर या अमनोहर शब्द आप से छिपे नहीं हैं और फिर मन और काया के योग के सिद्धांत से रंजित किया है इसलिए तुम अरहंत हो । सूत्र - १२
देवेन्द्र और अनुत्तर देव की समर्थ पूजा आदि के योग्य हो, करोड़ों मर्यादा का अंत करनेवाले को शरण के योग्य हो इसलिए अरहंत हो ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(वीरस्तव)- आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 5