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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र-३०१
___ वो सिद्ध हैं । बुद्ध हैं । पारगत हैं, परम्परागत हैं । कर्मरूपी कवच से उन्मुक्त, अजर, अमर और असंग हैं। सूत्र-३०२
जिन्होंने सभी दुःख दूर कर दिए हैं । जाति, जन्म, जरा, मरण के बन्धन से मुक्त, शाश्वत और अव्याबाध सुख का हमेशा अहसास करते हैं। सूत्र-३०३
समग्र देव की और उसके समग्र काल की जो ऋद्धि है उसका अनन्त गुना करे तो भी जिनेश्वर परमात्मा की ऋद्धि के अनन्तानन्त भाग के समान भी न हो। सूत्र-३०४
सम्पूर्ण वैभव और ऋद्धि युक्त भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और विमानवासी देव भी अरहंतो को वंदन करनेवाले होते हैं। सूत्र-३०५
भवनपति, वाणव्यंतर, विमानवासी देव और ऋषि पालित अपनी-अपनी बुद्धि से जिनेश्वर परमात्मा की महिमा का वर्णन करते हैं। सूत्र-३०६
वीर और इन्द्र की स्तुति के कर्ता जिसमें खुद सभी इन्द्र की और जिनेन्द्र की स्तुति कीर्तन किया वो। सूत्र - ३०७
सूरो, असुरो, गुरु और सिद्धों (मुजे) सिद्धि प्रदान करो। सूत्र - ३०८
इस तरह भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और विमानवासी देव निकाय देव की स्तुति (कथन) समग्र रूप से समाप्त हुआ।
३२ देवेन्द्रस्तव-प्रकिर्णक सूत्र-९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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