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आगम सूत्र २६, पयन्नासूत्र-३, 'महाप्रत्याख्यान'
सूत्र - ३८
उन-उन जातिमें बार-बार मैंने बहुत रुदन किया उस नेत्र के आँसू का पानी भी समुद्र के पानी से ज्यादा होता है ऐसा समझना ।
सूत्र
सूत्र ३९
ऐसा कोई भी बाल के अग्र भाग जितना प्रदेश नहीं है कि जहाँ संसारमें भ्रमण करनेवाला जीव पैदा नहीं हुआ और मरा नहीं ।
सूत्र - ४०
लोक के लिए वाकईमें चोराशी लाख जीवयोनि है । उसमें हर एक योनिमें जीव अनन्त बार उत्पन्न हुआ है सूत्र- ४१
उर्ध्वलोक के लिए, अधोलोक के लिए और तिर्यग्लोक के लिए मैंने कई बाल मरण प्राप्त किये हैं इसलिए अब उन मरण को याद करते हुए मैं अब पंड़ित मरण मरूँगा ।
सूत्र - ४२
मेरी माता, मेरा पिता, मेरा भाई, मेरी बहन, मेरा पुत्र, मेरी पुत्री, उन सब को याद करते हुए (ममत्व छोड़ के) में पंड़ित मौत मरूँगा ।
सूत्र - ४३
संसार में रहे कई योनिमें निवास करनेवाले माता, पिता और बन्धु द्वारा पूरा लोक भरा है, वो तेरा त्राण और शरण नहीं है ।
सूत्र ४४
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जीव अकेले कर्म करता है, और अकेले ही बूरे किए हुए पापकर्म के फल को भुगतता है, तथा अकेले ही इस जरामरणवाले चतुर्गति समान गहन वनमें भ्रमण करता है।
सूत्र - ४५-४८
नरक में जन्म और मरण ये दोनों ही उद्वेग करवानेवाले हैं, तथा नरक में कईं वेदनाएं हैं; तिर्यंची गतिमें भी उद्वेग को करनेवाले जन्म और मरण है, या फिर कईं वेदनाएं होती हैं; मानव की गति में जन्म और मरण है या फिर वेदनाएं हैं;... देवलोक में जन्म, मरण उद्वेग करनेवाले हैं और देवलोक से च्यवन होता है इन सबको याद करते हुए मैं अब पंड़ित मरण मरूँगा ।
सूत्र ४९
एक पंड़ित मरण कईं सेंकड़ों जन्म को (मरण को) छेदता है । आराधक आत्मा को उस मरण से मरना चाहिए कि जिस मरण से मरनेवाला शुभ मरणवाला होता है (भवभ्रमण घटानेवाला होता है ।)
सूत्र - ५०
जो जिनेश्वर भगवान ने कहा हुआ शुभ मरण - यानि पंड़ित मरण है, उसे शुद्ध और शल्य रहित ऐसा मैं पादपोपगम अनशन ले कर कब मृत्यु को पाऊंगा ?
सूत्र - ५१
सर्व भव संसार के लिए परिणाम के अवसर द्वारा चार प्रकार के पुद्गल मैंने बाँधे हैं और आठ प्रकार के (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय इत्यादि) कर्म का समुदाय मैंने बाँधा है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (महाप्रत्याख्यान)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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