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आगम सूत्र २६, पयन्नासूत्र-३, 'महाप्रत्याख्यान'
सूत्रसूत्र - २४
शल्य रहित मानव सिद्धि नहीं पा सकता, उसी तरह पापरूप मैल रखनेवाले (वीतराग) के शासन में कहा है; इसलिए सर्व शल्य उद्धरण कर के क्लेश रहित हुआ ऐसा जीव सिद्धि पाता है। सूत्र - २५
बहुत कुछ भी भाव शल्य गुरु के पास आलोचना कर के निःशल्य हो कर संथारा (अनशन) का आदर करे तो वो आराधक होता है। सूत्र - २६
वो थोड़ा भी भावशल्य गुरु पास आलोचन न करे तो अतिज्ञानवंत होने के बावजूद भी आराधक नहीं होता सूत्र - २७
बूरी तरह इस्तमाल किया गया शस्त्र, विष, दुष्प्रयुक्त वैताल, दुष्प्रयुक्त यंत्र और प्रमाद से कोपित साँप वैसा काम नहीं करता । (जैसा काम भाव शल्य से युक्त होनेवाला करता है।) सूत्र- २८,२९
जिस वजह से अंतकाल में नहीं उद्धरेल भावशल्य दुर्लभ बोधीपन और अनन्त संसारीपन कहता है- उस वजह से गारव रहित जीव पुनर्भव समान लता की जड़ समान एक जैसे मिथ्यादर्शन शल्य, माया शल्य और नियाण शल्य का उद्धरण करना चाहिए। सूत्र - ३०
जिस तरह बोज का वहन करनेवाला मानव बोज उतारकर हलका होता है वैसे पाप करनेवाला मानव आलोचना और निन्दा करके बहोत हलका होता है। सूत्र- ३१, ३२
मार्ग को जाननेवाला गुरु उस का जो प्रायश्चित्त कहता है उस अनवस्था के (अयोग्य) अवसर के डरवाले मानव को वैसे ही अनुसरण करना चाहिए- उसके लिए जो कुछ भी अकार्य किया हो उन सबको छिपाए बिना दस दोष रहित जैसे हुआ हो वैसे ही कहना चाहिए । सूत्र- ३३, ३४
सभी जीव का आरम्भ, सर्व असत्यवचन, सर्व अदत्तादान, सर्व मैथुन, सर्व परिग्रह का मैं त्याग करता हूँ ।
सर्व अशन और पानादिक चतुर्विध आहार और जो (बाह्य पात्रादि) उपधि और कषायादि अभ्यंतर उपधि उन सबको त्रिविधे वोसिराता हूँ। सूत्र-३५
जंगल में, दुष्काल में या बड़ी बीमारी होने से जो व्रत का पालन किया है और न तूटा हो वह शुद्धव्रत पालन समझना चाहिए।
सूत्र-३६
राग करके, द्वेष करके या फिर परिणाम से जो-पच्चक्खाण दूषित न किया हो वह सचमुच भाव विशुद्ध पच्चक्खाण जानना चाहिए। सूत्र - ३७
इस अनन्त संसार के लिए नई नई माँ का दूध जीवने पीया है वो सागर के पानी से भी ज्यादा होता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(महाप्रत्याख्यान)” आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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