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आगम सूत्र २१,उपांगसूत्र-१०, 'पुष्पिका'
अध्ययन/सूत्र
अध्ययन-६-माणिभद्र सूत्र-१०
__ भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान् ने पुष्पिका के पंचम अध्ययन का यह आशय कहा है तो इसके षष्ठ अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ?
___ आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह नगर था । गुण-शिलक चैत्य था । राजा श्रेणिक था । महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ । मणिभद्र देव सुधर्मासभा के मणिभद्र सिंहासन पर बैठकर यावत् रहा था । पूर्वभद्र देव के समान वह भी भगवान के समवसरण में आया और वापिस लौट गया । गौतम स्वामी ने उनको देवऋद्धि एवं पूर्वभव के विषय में पूछा।
भगवान ने कहा-उस काल और उस समय मणिपदिका नगरी थी। मणिभद्र गाथापति था । उसने स्थविरों के समीप प्रव्रज्या अंगीकार की । ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन किया
और मासिक संलेखना की । पापस्थानों का आलोचन-करके समाधिपूर्वक मरण करके मणिभद्र विमान में उत्पन्न हुआ । वहाँ उसकी दो सागरोपम की स्थिति है।
अन्त में उस देवलोक से च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा और सर्व दुःखों का अन्त करेगा।
अध्ययन-६-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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अध्ययन-७-से-१० सूत्र-११
इसी प्रकार दत्त, शिव, बल और अनादृत, इन सभी देवों को पूर्णभद्र देव के समान जानना । सभी की दोदो सागरोपम की स्थिति है । इन देवों के नाम के समान ही इनके विमानों के नाम हैं। पूर्वभव में दत्त चन्दना नगरी में, शिव मिथिला, बल हस्तिनापुर और अनादृत काकन्दी नगरी में जन्मे थे।
अध्ययन-७ से १०- का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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२१-पुष्पिका-उपांगसूत्र-१० का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (पुष्पिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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